श्रीगंगानगर. शहीदेआजम भगत सिंह और उनके दो क्रांतिकारी साथियों सुखदेव और राजगुरु को ब्रिटिश हुकूमत ने षडय़ंत्रपूर्वक निर्धारित समय से पहले लाहौर जेल में फांसी पर चढ़ाया। उसके बाद तीनों शहीदों के शवों को चोरी-छिपे फिरोजपुर के पास सतलुज नदी तक लाया गया और वहां आधा अधूरा अंतिम संस्कार कर शवों को सतलुज नदी में डाल दिया गया। अंग्रेजों के षडय़ंत्र का पता लगने पर लोग पीछा करते हुए वहां पहुंचे और शवों को नदी से बाहर निकाल कर पुन: सम्मानपूर्वक अंतिम संस्कार किया।
वह दिन था 23 मार्च 1931 का। अंग्रेजों के इस कायराना कृत्य का देशभर में विरोध हुआ। इन तीनों क्रांतिकारियों की शहादत के सोलह साल बाद देश आजाद हुआ, लेकिन दो टुकड़ों के साथ। एक टुकड़ा भारत बना और दूसरा पाकिस्तान।
भगत सिंह का जन्म 27 सितम्बर 1907 को लायलपुर के गांव बंगा में हुआ था। वह ऐतिहासिक स्थल भी अब पाकिस्तान में है। विभाजन के बाद उनका परिवार भारत के हिस्से वाले पंजाब के गांव खटकड़ कलां में आकर बस गया। शहीदेआजम भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु का समाधि स्थल 1960 तक पाकिस्तान के कब्जे में रहा। इस जगह को भारत में शामिल करने के प्रयास 1950 में शुरू हो गए थे। भगत सिंह के परिजनों और उनकी पार्टी के बचे हुए क्रांतिकारियों ने समाधि स्थल को भारत में शामिल करने के लिए सरकार पर दबाव बनाया, तब कहीं जाकर सरकार ने इस दिशा में प्रयास शुरू किए।
पाक ने रखी मांग
भारत सरकार ने शहीदों का समाधि स्थल भारत को देने की मांग पाकिस्तान के आगे रखी तो उसने भी इसके बदले में अपनी मांग रख दी। पाकिस्तान ने बदले में 12 गांव और सुलेमानकी हैडवर्क्स देने की मांग रखी। इस पर लगभग एक दशक तक मंथन चलता रहा। आखिरकार भारत सरकार ने शहीदों के समाधि स्थल को देश के लिए बहुमूल्य धरोहर मानते हुए पाकिस्तान की मांग को स्वीकार कर लिया।
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