
जयंती 31 अक्टूबर
देश के स्वतंत्रता आंदोलन के स्तंभ और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अग्रणी नेता वल्लभभाई पटेल ने स्वतंत्र भारत के प्रथम उप प्रधानमंत्री एवं गृहमंत्री के रूप में कुशल प्रशासक तथा दक्ष रणनीतिकार की ख्याति अर्जित की। उनके जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि 565 देसी रियासतों का भारतीय संघ में विलय थी। उन्हें भारतीय एकता के सूत्रधार लौह पुरूष सरदार पटेल के रूप में याद किया जाता है।
लौहपुरूष सरदार पटेल का जन्म 31 अक्टूबर 1875 को गुजरात के नाडियाड में हुआ। वे बचपन से ही बहुत स्वाभिमानी तथा कठोर स्वभाव के थे। वे छोटी उम्र में ही परिवार से अलग रहने लगे किन्तु उनका अपने परिवार के साथ मजबूत रिश्ता जीवन भर कायम रहा। उन्होंने 22 वर्ष की आयु में मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण की। उनकी इच्छा इंग्लैंड में वकालत की पढ़ाई करने की थी। उन्होंने पहले भारत में कानून की डिग्री हासिल की और गोधरा में वकालत करने लगे। अपना संकल्प पूरा करने के लिए वे 1911 में 36 वर्ष की आयु में लंदन गए तथा वहां मिडल टेंपल इन में वकालत की शिक्षा के लिए प्रवेश लिया। इंग्लैंड से लौटकर वे अहमदाबाद में रहने लगे। यही नगरी उनके राजनीतिक जीवन की जन्मस्थली और कर्मस्थली बनी। 1917 से ही वे वकीलों और किसानों के हितों से जुड़े सार्वजनिक कार्यों में रूचि लेने लगे थे, किन्तु स्वतंत्रता आंदोलन में उनका प्रवेश गांधीजी की प्रेरणा से उस समय हुआ जब उन्होंने खेड़ा के किसान आंदोलन का नेतृत्व संभाला। यह आंदोलन गांधी जी के नेतृत्व में चल रहा था, किन्तु उन्हें उसी समय चंपारण के किसानों के संघर्ष का साथ देने के लिए जाना पड़ा। तब उन्होंने वल्लभभाई पटेल को इस काम के लिए चुना। पटेल ने कांग्रेस के अन्य नेताओं के साथ खेड़ा के किसानों को करों की अदायगी न करने के लिए तैयार किया और अंततर: उनकी बहुत सी मांगें मान ली गई। इस आंदोलन की सफलता के बाद वे गांधी जी के और निकट आ गए तथा कांग्रेस में सक्रिय हो गए। 1920 में वे नवगठित गुजरात प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष बनाए गए। 1922 से 1927 के बीच वे तीन बार अहमदाबाद नगर पालिका के अध्यक्ष चुने गए।
खेड़ा में ग्रामवासियों को संगठित करने का उनका अनुभव 1928 में बारदौली सत्याग्रह में काम आया जब उन्होंने अहमदाबाद नगर पालिका की जिम्मेदारी से मुक्त होकर पूरी तरह से स्वतंत्रता आंदोलन के प्रति स्वयं को समर्पित कर दिया। पटेल ने चार महीनों तक अनवरत रूप से किसानों को कर का भुगतान न करने के लिए तैयार किया और आंदोलन के लिए जनता से धन भी एकत्र किया। अगस्त 1928 में सरकार बातचीत के लिए तैयार हो गई और पटेल ने वार्ता के कुशल संचालन के माध्यम से किसानों के कल्याण के अनेक उपायों पर ब्रिटिश शासकों को राजी कर लिया। इसी सत्याग्रह के दौरान उन्हें सरदार की उपाधि मिली। 1931 में नमक सत्याग्रह में उन्होंने आगे बढ़कर भाग लिया। उन्हें रास गांव में गिरफ्तार कर लिया गया। पटेल तथा बाद में गांधी जी की गिरफ़्तारी के फलस्वरूप नमक आंदोलन और तेज होता गया। 1931 में पटेल कराची अधिवेशन में कांग्रेस के अध्यक्ष चुने गए। इसी अधिवेशन में कांग्रेस ने के प्रस्ताव स्वीकार किये। लंदन गोलमेज सम्मेलन असफल रहने पर जनवरी 1932 में गांधी जी और पटेल को जेल में डाल दिया गया। जेल में पटेल और गांधी जी विभिन्न विषयों पर चर्चा करते रहते थे जिससे दोनों के बीच वैचारिक तथा व्यावहारिक निकटता और सुदृढ़ हो गई। बुनियादी मानव अधिकारों की रक्षा, धर्म निरपेक्ष स्वरूप, न्यूनतम वेतन तथा अस्पृश्यता के उन्मूलन जैसे मूल्यों को स्वतंत्रता आंदोलन का अंग बनाने का श्रेय पटेल को ही जाता है.
1934 तक पटेल कांग्रेस में अग्रणी नेताओं की पंक्ति में आ गए और वे पार्टी गतिविधियों के लिए धन जुटाने वाले प्रमुख नेता बन कर उभरे । 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन का दौर आते-आते सरदार पटेल नेहरू, आजाद तथा राजगोपालाचारी के साथ कांग्रेस के सर्वोच्च नेताओं की श्रेणी में शामिल हो चुके थे। 7 अगस्त 1942 को कांग्रेस ने सविनय अवज्ञा आंदोलन शुरू करने का प्रस्ताव स्वीकार किया। इस दौरान स्वास्थ्य ठीक न होने के बावजूद सरदार पटेल देश भर में घूम-घूम कर ओजस्वी भाषण देते रहे। साथ ही आंदोलन का खर्च वहन के लिए धन एकत्र करने के काम में भी जुटे रहे। 7 अगस्त को मुम्बई के ऐतिहासिक गोवालिया चैक में आयोजित एक लाख से अधिक लोगों की विशाल जनसभा को पटेल ने भी सम्बोधित किया। 9 अगस्त को उन्हें कांग्रेस के अन्य बड़े नेताओं के साथ गिरतार कर लिया गया और 1945 तक वे अहमदनगर के किले में कैद रहे। 15 जून 1945 को वे रिहा किए गए। आजादी के समय विभाजन की विभीषिका के साथ एक और विकट समस्या भी देश को विरासत में मिली। यह थी देसी रियासतों को भारतीय संघ में शामिल करना।
गृहमंत्री होने के नाते यह कठिन चुनौती भी पटेल के कंधों पर आई। गांधी जी ने पटेल से कहा – रियासतों की समस्या इतनी कठिन है कि इसे केवल तुम ही हल कर सकते हो। उन्होंने विभाजन के मामलों पर विचार के दौरान अपने सहयोगी रहे अधिकारी वी.पी. मेनन को अपने साथ लेकर 6 मई 1947 को रियासतों के एकीकरण का अभियान प्रारंभ किया। रियासतों के शासकों से मान-मनौवल और समझाने-बुझाने के फलस्वरूप जम्मू-कश्मीर जूनागढ तथा हैदराबाद को छोड़कर सभी रियासतें 15 अगस्त 1947 तक भारत से जुडने पर सहमत हो गईं। रियासतों के एकीकरण के कठिन व चुनौतीपूर्ण कार्य सम्पन्न करने के लिए सरदार पटेल की तुलना जर्मनी में ऐसा ही काम करने वाले नेता बिस्मार्क से की गई और उन्हें भारत का बिस्मार्क कहा गया। संविधान सभा के सदस्य के रूप में भी पटेल ने उपयोगी भूमिका निभाई। पटेल स्वयं संविधान सभा की अल्पसंख्यकों, जनजातीय और उपेक्षित क्षेत्र, मौलिक अधिकार तथा प्रांतीय संविधान पर विचार करने वाली समितियों के अध्यक्ष थे। अखिल भारतीय सेवाओं की व्यवस्था शुरू करने का श्रेय भी सरदार पटेल को जाता है। 1950 में सरदार पटेल की तबियत खराब रहने लगी। उन्होंने बैठकों में भाग लेना कम कर दिया और घर पर डाक्टरों का दल उनकी देखभाल के लिए तैनात रहने लगा। 15 दिसम्बर को उन्हें दिल का दौरा पड़ा और वे सदा के लिए इस संसार से विदा हो गए। सरदार पटेल का पूरा जीवन जन कल्याण तथा देश सेवा को समर्पित रहा। यही कारण है कि उनके नाम पर देशभर में अनेक संस्थाएं चल रही हैं और अनेक स्थानों पर उनकी प्रतिमाएं स्थापित की गई। गुजरात में स्टेच्यू आफ यूनिटी का निर्माण चल रहा है जो विश्व में सबसे ऊंची प्रतिमाओं में शामिल होगी। पटेल देश की एकता के सूत्रधार और लौह पुरूष थे।
