विश्व प्रसिद्ध गुलाबी नगर की स्थापना 18 नवम्बर, 1727 को सवाईं जयसिंह ने की। यह शहर आज भी इतिहास, कला, संस्कृति तथा मंदिरों की दृष्टि से समृद्ध एवं सम्पन्न है। जयपुर नरेश सवाई जयसिंह ने जयपुर के निर्माण – नियोजन का जिम्मा तात्कालिक मंत्री विधाधर जी को दिया था।

विश्व प्रसिद्ध हवामहल
जयपुर चारों ओर से दीवारों और परकोटे से घिरा हुआ है। तात्कालिक योजनाकारों ने जयपुर को इस तरह बसाया कि यह शहर के लिए उत्तम भवन योजना, बरसाती एवं घरेलू पानी की निकासू व्यवस्था, जल भरण, सुरक्षा, सुगम यातायात व्यवस्था, पैदल तथा वाहनों के आवागमन के साधनों की वयव्स्था, भविष्य में होने वाली परेशानियों के संभावनाओं तथा प्राकृतिक विविधता आदि से शहर व्यवस्थित रह सके।
जयपुर शहर के निर्माण से पहले इसका नक्शा बनवाया गया था। इसके बाद इसका निर्माण कार्य शुरू किया गया। विश्व मेे स्थापत्य एवं शिल्प कला की दृष्टि से जयपुर मध्यकालीन भारत का सुन्दरतम और सुनियोजित शहर है। जयपुर शहर में प्रवेश के लिए पहले सात दरवाजे (गंगापोल गेट, चांदपोल गेट, अजमेरी गेट, सांगानेरी गेट, जोरावरसिंह गेट, गलता गेट, घाटगेट) थे। बाद में एक और दरवाजा न्यू गेट बनवाया गया। पूरा शहर करीब छः भागों में बंटा हुआ है। यहां से सभी मार्ग एक सीध में बनाए गए है। मुख्य सड़क की कुल चैड़ाई 110 फीट है। यह मार्ग आज भी अपने चैड़ेंनुमा तथा खुलेपन के कारण शहर की व्यस्ततम यातायात व्यवस्था में सहायक है। जयपुर शहर चैकड़ियों के लिए भी मशहूर है। शहर की प्रमुुख चैकड़ियों के नाम चैकड़ी रामचन्द्रजी, चैकड़ी गंगापोल, तोपखाना हजूरी, घाट दरवाजा, चैकड़ी विश्वेष्वरजी, चैकड़ी मोदीखाना, तोपखाना देष और पुरानी बस्ती (ब्रह्यपुरी) रखे गए। प्रत्येक चैकड़ी छोटे-छोटे चैकोर मौहल्लों से बनी हुई थी। प्रत्येक चैकड़ी में करीब 500 मौहल्ले हुआ करते थे। इन मौहल्लों के नाम उनमें चलने वाले व्यवसायों के नाम पर होते थे। जयपुर अरावली पर्वतमाला से घिरा हुआ है जो इसकी वैभवता तथा खुबसूरती को और बढ़ाते है। अरावली की पहाड़ियों पर स्थित नाहरगढ़ दुर्ग जयपुर के मुकुट के समान प्रतीत होता है। वहीं दूसरी ओर जयगढ़ दुर्ग, चरण मन्दिर, गढ़ गणेश मन्दिर तथा गलता तीर्थ भी इसी पर्वत श्रृंखला पर स्थित है। शहर की लाल सूरखी के चूने से बनी हवेलियां भी भवन निर्माण की सर्वोत्तम कारगरी का नमूना थी। यह गर्मी में ठंडी और सर्दी में गरम रहती थी। दीवारें मोटी और छतें ऊंची होती थी। हर तरह के मौसम का इन हवेलियों पर कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ता था।
सन् 1876 में जयपुर के तात्कालिक महाराजा रामसिंह द्वारा इंग्लैण्ड की महारानी एलिजाबेथ प्रिंस आॅफ वेल्स युवराज अल्बर्ट के स्वागत में पूरे शहर को गुलाबी रंग से रंगवाया था तभी से यह शहर गुलाबी नगर के रूप में विख्यात हुआ। यह शहर अपने नियोजित नगर निर्माण, किले- महल, सभ्यता-संस्कृति, ऐतिहासिक धरोहरों तथा गौरवशाली परम्पराओं के साथ आज भी देश-विदेश में प्रसिद्ध है।
जयपुर- एक नजर: जयपुर जिला 26०.23‘ से 27०.51‘ उत्तरी अक्षांश एवं 74०.55‘ से 76०.50‘ पूर्वी देशांतर के मध्य स्थित है। यह राजस्थान के पूर्व में है। इसके उत्तर में सीकर व हरियाणा का महेन्द्रगढ़ जिला, दक्षिण में टोंक जिला, पूर्व में अलवर, दौसा एवं सवाईमाधोपुर जिले तथा पश्चिम में नागौर व अजमेर जिले है। जयपुर समुद्र तल से 122 से 183 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। इसकी लम्बाई पूर्व से पश्चिम 180 कि.मी तथा उत्तर से दक्षिण 110 कि.मी. है। जयपुर का क्षेत्रफल 11,143 वर्ग किलोमीटर है। इसमें 737.59 वर्ग कि.मी. शहरी तथा ग्रामीण 10,405.41 वर्ग किमी है। 2011 की जनगणना के अनुसार शहर की जनसंख्या 66,63,971 है इसमें 31,64,767 ग्रामीण तथा 34,99,204 शहरी आबादी है। जयपुर की साक्षरता दर 76.44 प्रतिशत है पुरूष – 87.27 प्रतिशत, महिला – 64.63 प्रतिशत।
