विश्व वृद्धजन दिवस 1 अक्बटूर को मनाया जाता है। संयुक्त राष्ट्र ने विश्व में बुजुर्गों के प्रति हो रहे दुव्र्यवहार और अन्याय को समाप्त करने के लिए और लोगों में जागरुकता फैलाने के लिए यह दिवस मानाने का निर्णय लिया। 14 दिसम्बर, 1990 को यह निर्णय लिया कि हर साल 1 अक्टूबर को विश्व वृद्वजन दिवस मनाकर हम बुजुर्गों को उनका सही स्थान दिलाने की कोशिश करेंगे। 1 अक्टूबर, 1991 से यह दिवस लगातार मनाया जा रहा है। बढ़ती जनसंख्या के प्रति विश्वव्यापी चिंता के कारण इस समय विश्व भर में शिशु-जन्मदर में कुछ कमी हो रही है, लेकिन दूसरी ओर स्वास्थ्य और चिकित्सा संबंधी बढ़ती सुविधाओं के कारण औसत आयु में निरन्तर वृद्धि हो रही है। यह औसत आयु अलग-अलग देशों में अलग-अलग है। भारत में सन 1947 में यह औसत आयु केवल 27 वर्ष थी, जो 1961 में 42 वर्ष, 1981 में 54 वर्ष और अब लगभग पैंसठ वर्ष तक पहुंच गयी है। साठ से अधिक आयु के लोगों की संख्या में वृद्धि हमारे यहां विशेष रूप में 1961 से प्रारम्भ हुई, जो चिकित्सा सुविधाओं के प्रसार के साथ-साथ निरन्तर बढ़ती चली गयी। हमारे यहां 1991 में 60 वर्ष से अधिक आयु के 5 करोड़ 60 लाख व्यक्ति थे, जो 2007 में बढ़कर 8 करोड़ 40 लाख हो गये। देश में सबसे अधिक बुजुर्ग केरल में हैं। वहां कुल जनसंख्या में लगभग 14 प्रतिशत बुजुर्ग हैं, जबकि सम्पूर्ण देश में यह औसत लगभग 8.6 प्रतिशत है। बुजुर्ग या वृद्धजन हमारे मार्गदर्शक होते हैं। वे किसी के पिता या माता होते है। वे अपना सारा जीवन हमे संवारने में लगाते हैं। लेकिन समाज में यह देखने में आता है कि बहुत से लोग अपने माता-पिता के बुर्जुग होने पर तिरस्कार कर देते हैं। मजबूरन इन बुजुर्गो को ओल्डएज होम की शरण लेनी पड़ती है अथवा दर-दर की ठोकरे खाने को विवश होना पड़ता हैं। यह हमारे समाज की कटु सच्चाई है। यह मानवीय उपेक्षा का घिनौना रूप है। यह सर्वविदित है कि भविष्य में हमें भी इस स्थिति में आना होगा। इन्हें उचित सम्मान और सहारे की जरूरत है। अतीत के प्रतीक, अनुभवों के भंडार तथा सभी की श्रद्धा के पात्र हैं। समाज में यदि उपयुक्त सम्मान मिले और उनके अनुभवों का लाभ उठाया जाए तो वे हमारी प्रगति में विशेष भागीदारी भी कर सकते हैं। बुजुर्गों की बढ़ती संख्या हमारे लिए चिंतनीय नहीं है। चिंता केवल इस बात की होनी चाहिए कि वे स्वस्थ, सुखी और सदैव सक्रिय रहें।
वृद्धों की सेवा और उनकी रक्षा के लिए कई कानून और नियम बनाए गए हैं। केंद्र सरकार ने भारत में वरिष्ठ नागरिकों के आरोग्यता और कल्याण को बढ़ावा देने के लिए वर्ष 1999 में वृद्ध सदस्यों के लिए राष्ट्रीय नीति तैयार की है। इस नीति का उद्देश्य व्यक्तियों को स्वयं के लिए तथा उनके पति या पत्नी के बुढ़ापे के लिए व्यवस्था करने के लिए प्रोत्साहित करना है। इसमें परिवारों को अपने परिवार के वृद्ध सदस्यों की देखभाल करने के लिए प्रोत्साहित करने का भी प्रयास किया जाता है। इसके साथ ही 2007 में माता-पिता एवं वरिष्ठ नागरिक भरण-पोषण विधेयक संसद में पारित किया गया है। इसमें माता-पिता के भरण-पोषण, वृद्धाश्रमों की स्थापना, चिकित्सा सुविधा की व्यवस्था और वरिष्ठ नागरिकों के जीवन और संपत्ति की सुरक्षा का प्रावधान किया गया है। इन सभी नियमों एवं कानूनों के बावजूद हमें बुजुर्गों की सेवा और सम्मान का ध्यान रखना चाहिए। भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति में माता पिता पूजे जाते हैं। बुजुर्गो की सेवा करते रहना ही सच्ची उपलब्धि है।
