मनुष्य का प्रकृति से संबंध आदिकाल से है। मनुष्य प्रकृति के साथ सामंजस्य व सन्तुलन स्थापित कर अपना जीवन यापन करता है। कभी-कभी यह सन्तुलन बिगड़ने पर प्राकृतिक असन्तुलन की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। मानव द्वारा प्रकृति के बनाए गए नियमों के अनुसार नहीं चलने तथा प्रकृति के साथ अवांछित छेड़छाड़ से पर्यावरणीय समस्याएं पैदा होने लगती है। इसके परिणामस्वरूप पर्यावरण तथा पारिस्थितिकीय तंत्र को खतरा उत्पन्न होने लगता है। इससे सम्पूर्ण मानव-जाति, वन्य जीव-जन्तु सभी प्रभावित होते है। यह स्थितियां एक भयावह खतरे की ओर संकेत करती है। यह सभी के लिए चिंता की बात है।
पर्यावरणीय समस्या भारत ही नहीं अपितु समूचे विश्व की समस्या है। भारत विश्व के कुल क्षेत्रफल का 2.4 प्रतिशत हिस्सा है। साथ ही विश्व की कुल जनसंख्या की 18.4 प्रतिशत जनसंख्या भारत में निवास करती है। पिछले कई सालों से देश की जनसंख्या में लगतातार हो रही वृद्धि के कारण से प्राकृतिक संसाधनों पर दबाव बढ़ा है। प्राकृतिक संसाधनों पर विपरित प्रभाव पड़ने से पर्यावरण प्रदूषण होता है।
हाल में ही विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) द्वारा विश्व के 20 सबसे प्रदूषित शहरों की लिस्ट जारी की है। इनमें कानपुर, दिल्ली और बनारस समेत भारत के 14 शहर शामिल हैं। डब्ल्यूएचओ के अनुसार दुनियाभर के 10 में से 9 लोग सांस लेते वक्त हवा के साथ बड़ी मात्र में प्रदूषित पदार्थो को ले रहे हैं। घरेलू और बाहरी प्रदूषण से भारत में हर साल 24 लाख लोगों की मौत होती है, जो दुनियाभर में होने वाली कुल मौतों का 30 प्रतिशत है। डब्ल्यूएचओ की ग्लोबल अर्बन एयर पॉल्यूशन टीम द्वारा 108 देशों के 4300 शहरों से पीएम 10 और पीएम 2.5 के महीन कणों का डाटा तैयार किया गया। इसके मुताबिक 2016 में पूरी दुनिया में सिर्फ वायु प्रदूषण से लगभग 42 लाख लोगों की मौत हुई है। वहीं खाना बनाने, फ्यूल और घरेलू उपकरणों से फैलने वाले प्रदूषण से दुनिया में करीब 38 लाख लोगों की मौत हुई।
अगर समय रहते हम सभी ने इस समस्या को गंभीरता से नहीं लिया तो आगे आने वाला समय भयावह हो सकता है। देश के सभी बड़े शहरों में वायु प्रदूषण अपने निर्धारित मानकों से बहुत ज्यादा है। ग्रीनपीस इंडिया की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में वायु प्रदूषण की स्थिति भयावह है। कुल 168 भारतीय शहरों में से एक भी डब्ल्यूएचओ के मानकों के अनुरूप नहीं है। संगठन के अनुसार भारत में हर साल वायु प्रदूषण के चलते लाखों लोगों की जान चली जाती है। देश का विकास जरूरी है लेकिन सबसे पहले वायु प्रदूषण से लड़ना होगा। एक अध्ययन के मुताबिक वायु प्रदूषण भारत में मौत का पांचवां बड़ा कारण है। हवा में मौजूद पीएम 2.5 और पीएम 10 जैसे छोटे कण मनुष्य के फेफड़े में पहुंच जाते हैं, जिससे सांस व हृदय संबंधित बीमारी होने का खतरा बढ़ जाता है। इससे फेफड़ा का कैंसर भी हो सकता है। कई शहरों में वायु प्रदूषण बढ़ने का मुख्य कारण वाहनों की बढ़ती संख्या है। अगर हालात नहीं सुधरे तो वह दिन दूर नहीं जब शहर रहने के लायक नहीं रहेंगे। विकास, तरक्की और रोजगार के कारण शहरीकरण बढ़ा है और साथ ही प्रदूषण भी बढ़ रहा है। शहरीकरण के कारण कंक्रीट के विशाल जंगल खड़े हो गए है। हरियाली की जगह सीमेण्ट ने ले ली है। कल-कारखानों तथा औद्योगिक प्रोजेक्ट्स से निकलने वाले धुंए ने पर्यावरण में जहर सा घोल दिया है।
स्वच्छ वायु सभी मनुष्यों, जीवों एवं वनस्पतियों के लिए अत्यंत आवश्यक है। मनुष्य दिन भर में 22000 बार सांस लेता है। इस प्रकार प्रत्येक दिन में वह 16 किलोग्राम या 35 गैलन वायु ग्रहण करता है। वायु विभिन्न गैसों का मिश्रण होती है जिसमें नाइट्रोजन की मात्र सर्वाधिक 78 प्रतिशत होती है, जबकि 21 प्रतिशत ऑक्सीजन और 0.03 प्रतिशत कार्बन डाईऑक्साइड होता है तथा शेष 0.97 प्रतिशत में हाइड्रोजन, हीलियम, ऑर्गन, निऑन, क्रिप्टन, जेनान, ओजोन और जल वाष्प होती है। वायु में विभिन्न गैसों की उपरोक्त मात्र उसे संतुलित बनाए रखती है। इसमें जरा-सा भी अंतर आने पर वह असंतुलित हो जाती है और स्वास्थ्य के लिए हानिकारक साबित होती है। श्वसन के लिए ऑक्सीजन जरूरी है। जब कभी वायु में कार्बन डाईऑक्साइड, नाइट्रोजन के ऑक्साइडों की वृद्धि हो जाती है तो यह खतरनाक हो जाती है।
वायु शुद्धता का स्तर भारत के मेट्रो शहरों में पिछले 20 वर्षो में बहुत ही खराब रहा है। इस दौरान आर्थिक स्थिति ढाई गुना बढ़ी है और औद्योगिक प्रदूषण में चार गुना बढ़ोतरी हुई है। वास्तविकता तो यह है कि पिछले 18 वर्ष में जैविक ईंधन के जलने की वजह से कार्बन डाईऑक्साइड का उत्सर्जन 40 प्रतिशत तक बढ़ चुका है और पृथ्वी का तापमान 0.7 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ा है। अगर यही स्थिति रही तो 2030 तक पृथ्वी के वातावरण में कार्बन डाईऑक्साइड की मात्र 90 प्रतिशत तक बढ़ जाएगी। प्रकृति के साथ सन्तुलन बनाए रखने के लिए सर्वाधिक प्रचलित और आसान तरीका है अधिकाधिक पौधारोपण-वृक्षारोपण। हम सभी को कम से कम एक पेड़ लगाना होगा और उसकी समूचित देखभाल भी करनी होगी। विकास की विभिन्न योजनाओं के केन्द्र में पर्यावरण को रखकर ही आगे बढ़ा जाए। पर्यावरण जागरूकता कार्यक्रमों और अभियानों को और गति प्रदान की जाए। इस प्रकार प्रत्येक व्यक्ति को अपनी नैतिक जिम्मेदारी समझते हुए पर्यावरण संरक्षण की दिशा में पुरजोर तरीके से अग्रसर होना चाहिए। इन प्रयासों से हम ना केवल पर्यावरण और पारिस्थितिक तंत्र को मजबूत बना सकते है बल्कि हमारी आने वाली पीढ़ियों को बेहतर और सुरक्षित कल दे सकते है।
