दीपावली त्योंहार खुशियों का त्योंहार है। पांच दिनों का यह त्योहार लागों के जीवन में उत्साह और उमंग भर देता है। धर्मग्रंथों के अनुसार कार्तिक अमावस्या को भगवान श्री रामचंद्रजी चैदह वर्ष का वनवास पूराकर तथा रावण का संहार करके अयोध्या लौटे थे। तब अयोध्यावासियों ने राम के राज्यारोहण पर दीपमालाएं जलाकर महोत्सव मनाया था। दीपावली हिंदुओं के प्रमुख त्योहारों में से एक है। यह पर्व अलग-अलग नाम और विधानों से पूरी दुनिया में मनाया जाता है। इसका एक कारण यह भी है कि इसी दिन अनेक विजयश्री युक्त कार्य हुए हैं। बहुत से शुभ कार्यों का प्रारम्भ भी इसी दिन से माना गया है। इसी दिन उज्जैन के सम्राट विक्रमादित्य का राजतिलक हुआ था। विक्रम संवत का आरम्भ भी इसी दिन से माना जाता है। इस दिन व्यापारी अपने बही-खाते बदलते हैं तथा लाभ-हानि का ब्यौरा तैयार करते हैं।
दीपावली पूजन मुहूर्त
श्री महालक्ष्मी पूजन व दीपावली का महापर्व कार्तिक कृष्ण पक्ष की अमावस्या में प्रदोष काल, स्थिर लग्न समय में मनाया जाता है। धन की देवी श्री महा लक्ष्मी जी का आर्शीवाद पाने के लिये इस दिन लक्ष्मी पूजन करना विशेष रुप से शुभ रहता है।
्श्री महालक्ष्मी पूजन व दीपावली का महापर्व कार्तिक कृष्ण पक्ष की अमावस्या में प्रदोष काल, स्थिर लग्न समय में मनाया जाता है। धन की देवी श्री महालक्ष्मी का आशीर्वाद पाने के लिये इस दिन लक्ष्मी पूजन करना विशेष रुप से शुभ रहता है। वर्ष 2019 में दीपावली, 27 अक्टूबर, रविवार के दिन है। दीपावली में अमावस्या तिथि, प्रदोष काल, शुभ लग्न व चैघाडिया मुहूर्त विशेष महत्व रखते है। दीपावली व्यापारियों, क्रय-विक्रय करने वालों के लिये विशेष रुप से शुभ मानी जाती है।दीपावली पूजा कैसे करे
दीपावली के दिन की विशेषता लक्ष्मी जी के पूजन से संबन्धित है। इस दिन हर घर, परिवार, कार्यालय में लक्ष्मी जी के पूजन के रुप में उनका स्वागत किया जाता है। दीपावली के दिन लोग धन की देवी लक्ष्मी से समृद्धि और वित्तकोष की कामना करते हैं।
पूजा की सामग्री
लक्ष्मी व श्री गणेश की मूर्तियां (बैठी हुई मुद्रा में). केशर, रोली, चावल, पान, सुपारी, फल, फूल, दूध, खील, बताशे, सिंदूर, शहद, सिक्के, लौंग. सूखे, मेवे, मिठाई, दही, गंगाजल, धूप, अगरबत्ती, 11 दीपक. रूई तथा कलावा नारियल और तांबे का कलश चाहिए।
दीपावली पूजन की तैयारी
एक थाल में या भूमि को शुद्ध करके नवग्रह बनायें या नवग्रह यंत्र की स्थापना करें। इसके साथ ही एक ताम्बें का कलश बनाएं, जिसमें गंगाजल, दूध, दही, शहद, सुपारी, सिक्के और लौंग आदि डालकर उसे लाल कपडे से ढक कर एक कच्चा नारियल कलावे से बांध कर रख दें।
जहां पर नवग्रह यंत्र बनाया गया है. वहां पर रुपया, सोना या चांदी का सिक्का, लक्ष्मी जी की मूर्ति या मिट्टी के बने हुए, लक्ष्मी – गणेश सरस्वती जी या ब्रह्मा, विष्णु, महेश और अन्य देवी देवताओं की मूर्तियां या चित्र सजाएं। कोई धातु की मूर्ति हो तो उसे साक्षात रुप मानकर दूध, दही ओर गंगाजल से स्नान कराकर अक्षत, चंदन का श्रंगार करके फल आदि से सजाएं। इसके ही दाहिने और एक पंचमुखी दीपक अवश्य जलायें, जिसमें घी या तिल का तेल प्रयोग किया जाता है।
