रूप चतुर्दशी को नर्क चतुर्दशी, नरक चैदस, रुप चैदस अथवा नरका पूजा के नामों से जाना जाता है। इस वर्ष 2018 को रूप चतुर्दशी 6 नवम्बर के दिन मनाई जाएगी। इसे छोटी दीपावली के रुप में भी मनाया जाता है। इस दिन संध्या के पश्चात दीपक जलाए जाते हैं और चारों ओर रोशनी की जाती है। रूप चैदस के दिन तिल का भोजन और तेल मालिश, दन्तधावन, उबटन व स्नान आवश्यक होता है.
नर्क चतुर्दशी
नरक चतुर्दशी का पूजन अकाल मृत्यु से मुक्ति तथा स्वास्थ्य सुरक्षा के लिए किया जाता है। एक पौराणिक मान्यता के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण ने कार्तिक माह को कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी के दिन नरकासुर का वध करके, देवताओं व ऋषियों को उसके आतंक से मुक्ति दिलवाई थी।
रूप चतुर्दशी पौराणिक आधार
नरक चतुर्दशी को रूप चतुर्दशी भी कहते हैं। इस दिन भगवान श्रीकृष्ण की भी पूजा का विधान है। भगवान श्री कृष्ण का पूजन करने से व्यक्ति को सौंदर्य की प्राप्ति होती है। रूप चतुर्दशी से संबंधित एक कथा भी प्रचलित है मान्यता है कि प्राचीन समय पहले हिरण्यगर्भ नामक राज्य में एक योगी रहा करते थे। एक बार योगीराज ने प्रभु को पाने की इच्छा से समाधि धारण करने का प्रयास किया. अपनी इस तपस्या के दौरान उन्हें अनेक कष्टों का सामना करना पड़ा। अपनी इतनी विभत्स दशा के कारण वह बहुत दुखी होते हैं। तभी विचरण करते हुए नारद जी उन योगी राज जी के पास आते हैं और उन योगीराज से उनके दुख का कारण पूछते हैं। योगीराज उनसे कहते हैं कि, हे मुनिवर मैं प्रभु को पाने के लिए उनकी भक्ति में लीन रहा परंतु मुझे इस कारण अनेक कष्ट हुए हैं ऐसा क्यों हुआ? योगी के करूणा भरे वचन सुनकर नारदजी उनसे कहते हैं, हे योगीराज तुमने मार्ग तो उचित अपनाया किंतु देह आचार का पालन नहीं जान पाए इस कारण तुम्हारी यह दशा हुई है। नारदजी उन्हें कार्तिक कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी के दिन व्रत रखकर भगवान विष्णु की पूजा अराधना करने को कहते हैं, क्योंकि ऐसा करने से योगी का शरीर पुनरू पहले जैसा स्वस्थ और रूपवान हो जाएगा। अतरू नारद के कथनों अनुसार योगी ने व्रत किया और व्रत के प्रभाव स्वरूप उनका शरीर पहले जैसा स्वस्थ एवं सुंदर हो गया. इसलिए इस चतुर्दशी को रूप चतुर्दशी के नाम से जाना जाने लगा।
