महिलाओं के लिए समर्पित दिवस 8 मार्च को विश्व महिला दिवस के रूप में मनाया जाता है। महिला दिवस महिलाओं के प्रति मान-सम्मान का प्रतीक दिवस है। इस दिन समूचे विश्व सहित भारत में वभिन्न कार्यक्रम आयोजित होते हैं। यह दिवस आधी आबादी को नमन का दिवस होता है। विगत कुछ वर्षो में शिक्षा के प्रचार-प्रसार, सामाजिक सोच में बदलाव तथा नारी सशक्तिकरण अभियानों के कारण महिलाओं के सामाजिक, शैक्षणिक और व्यक्तिगत जीवन स्तर में थोड़ा सुधार हुआ है। विभिन्न क्षेत्रों में महिलाओं की उपस्थिति और उपलब्धियां महिलाओं के आगे बढऩे की स्थिति को दर्शाती है। मुख्य रूप से घर-परिवार में प्रोत्साहन मिलने तथा महिलाओं की आगे बढऩे और खुद को साबित करने की ललक के कारण महिलाएं अपना तथा अपने परिवार का नाम आगे बढ़ा रही है। यह स्थिति देश, समाज सभी के लिए हर्ष की बात है। लेकिन अभी और बहुत आगे जाना है।
जनगणना 2011 के अनुसार देश में महिलाओं की जनसंख्या 58.74 करोड़ है। भारत की साक्षरता दर 73 प्रतिशत है। महिलाओं की साक्षरता दर 64.60 प्रतिशत है। साथ ही राजस्थान में महिला साक्षरता का आंकड़ा 52.10 प्रतिशत ही है। हांलाकि बालिका शिक्षा के आंकड़ों में बदलाव आ रहा है। 2018 में इजाफा हुआ लेकिन अधिकारिक आधार वर्ष 2011 का ही है। सामाजिक बदलावों के बावजूद वर्तमान में देश में बाल लिंगानुपात की स्थिति में भिन्नता देखने को मिलती है। आज भी देश में बहुत बड़ी जनसंख्या बेटा होने की चाह की विचारधारा में उलझे हुए है। यह विडम्बना है कि 2019 में भी हम विचारधारा को बदलने में पूरी तरह से सफल नहीं हुए है। आज भी भारतीय समाज में सभी वर्गों में बड़ी संख्या में लोग बेटा होने की इच्छा रखते हैं और नहीं चाहते कि उन्हें बेटी हो। पिछले साल नीति आयोग द्वारा अपनी पहली स्वास्थ्य रिपोर्ट ”स्वस्थ राज्य, प्रगतिशील भारतÓÓ जारी की गई। इस रिपोर्ट के अनुसार देश के 21 बड़े राज्यों में से 17 में बच्चों के जन्म के समय लिंगानुपात और बिगड़ गया है। आयोग ने कन्या भु्रण हत्या के मामलों की और सख्ती से जांच कर रोकने पर जोर दिया है। ‘हेल्दी स्टेट्स, प्रोग्रेसिव इंडियाÓ नाम की रिपोर्ट में 2012-14 को बेस ईयर, जबकि 2013-15 को रेफरेंस ईयर माना गया है। देश में गुजरात में जन्म के समय का लिंगानुपात सबसे ज्यादा 53 प्वाइंट गिरा है। यह आंकड़ा प्रति हजार 907 लड़कियों से घटकर 854 रह गया है। लिस्ट में हरियाणा दूसर नंबर पर है जहां 35 कों की गिरावट हुई है। हरियाणा में जहां साल 2012-14 में प्रति हजार पुरुष पर 866 महिलाएं थीं, वहीं साल 2013-25 में ये अनुपात गिरकर 831 ही रह गया है। तीसरे स्थान राजस्थान प्रदेश का है जहां लिंगानुपात 53 प्वाइंट गिरा है। यह आंकड़ा प्रति हजार 893 लड़कियों से घटकर 861 रह गया है। रिपोर्ट में कहा गया कि जन्म से पहले भु्रण की लिंग जांच रोकने वाला पीसीपीएनडीटी कानून राज्यों में प्रभावी तरीके से लागू किए जाएं। साथ ही बेटियों के महत्व के बारे में प्रचार के लिए जरूरी कदम उठाए जाने की जरूरत है। यह स्थिति सभी के लिए चिंतनीय बात है। आज जहां एक तरफ आधुनिकता से परिपूर्ण समाज में महिलाएं हर क्षेत्र में आगे बढ़ती हुई नजर आती है वहीं दूसरी ओर समाज का एक वर्ग बेटे की चाह में बेटियों को इस दुनिया में आने नहीं देता। इसके अलावा यह सच्चाई सभी के सामने है कि भारत में जन्म लेने वाली अधिकतर लड़कियां शिक्षा, स्वास्थ्य जैसे बुनियादी अधिकारों और बाल विवाह से सुरक्षा के अधिकार से वंचित हैं। परिणामस्वरूप महिलाओं के प्रति हिंसा, अपराध में बढ़ावा होता है। मजबूरीवश कई महिलाओं को नारकीय जीवन व्यतीत करना पड़ता है। सरकार द्वारा महिला सशक्तिकरण की दिशा में कई प्रयास किए जा रहे है। महिला कानूनों को सख्त बनाना, कानूनों का शत-प्रतिशत क्रियान्वयन,, कन्या भु्रण हत्या एवं जांच को रोकने हेतू पीसीपीएनडीटी कानून का सख्ती से पालन, बेटी बचाओं-बेटी पढ़ाओं अभियान, बालिका शिक्षा योजना, विद्यालयों में महिला शौचालयों का निर्माण सहित विभिन्न कानूनों और योजनाओं के माध्यम से महिला सुरक्षा और उत्थान का कार्य किया जा रहा है।
सरकार के द्वारा इन योजनाओं को प्रारम्भिक स्तर पर लाभ भी मिला लेकिन नीति आयोग की लिंगानुपात पर आई ताजा रिपोर्ट चिंताजनक स्थिति दर्शाती है। सरकार को चाहिए कि वह कानून एवं नीतियों का सख्ती से पालन करवाए। साथ ही आमजन भी इस दिशा में जागरूकता फैलाए। आमजन का सहयोग और भागीदारी सरकार को मिलना जरूरी है। व्यापक स्तर पर सामाजिक – वैचारिक सोच में बदलाव, मान-सम्मान, सहयोग से ही देश की बेटियों को आगे बढऩे में मदद मिल सकती है। क्यों कि बेटियां ही घर, परिवार, समाज तथा देश का गहना होती है।
