हमारा भारत तीज-त्योहारों और पर्वों का देश है। यहां हर त्योहार विभिन्न संस्कृतियों, परम्पराओं और रीति रिवाजों की झलक प्रस्तुत करता है। इन्हीं त्योहारों में से एक है- होली का त्योहार। होली का त्योहार रंगों और उमंगों से भरा होता है। शीत ऋतु के उपरांत बंसत के आगमन पर यह आता है। होली का त्योहार प्राकृतिक सौन्दर्य का पर्व है। होली का त्योहार प्रतिवर्ष फाल्गुन मास की पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है। होली से एक दिन पहले होलिका दहन होता है। होली उमंग और रंगों का त्योहार है। यह पर्व बंसत ऋतु से चालीस दिन पहले मनाया जाता है। सामान्य रुप से देखे तो होली समाज से बैर-द्वेष को छोडकर एक दुसरे से मेल मिलाप करने का त्योहार है। इस अवसर पर लोग पानी में रंग मिलाकर, एक -दूसरे को रंगों से सराबोर करते है। गुलाल लगाते है। रंगों की छठा बिखेरते हैं।
आज होली के रंग की धूम केवल भारत तथा उसके प्रदेशों तक ही सीमित नहीं है, अपितु होली का उडता हुआ गुलाल दूसरों देशों में भी पहुंचा है। भारतीय त्योहारों और परम्पराओं ने सीमाओं का विस्तार कर लिया है। होली स्नेह और प्रेम का त्योहार है। सभी लोग होली का आनंद लेते है। प्राचीन समय में होली के लिये पिचकारियों का प्रयोग होता था, परन्तु समय अनुसार परिर्वतन होता गया, आज पिचकारियों के साथ साथ हर वर्ग होली खेलने के लिये अपने अलग तरह के संसाधनों का प्रयोग करता है, जहां, कुछ लोग इत्र, चंदन और उतम स्तर के गुलाल का प्रयोग करते है. वहीं, कई लोग पानी, मिट्टी ओर कभी कभी कीचड से भी होली खेल कर होली के त्योहार को मना लेते है।
होली का त्योहार बच्चे, युवा, वृ्द्ध, स्त्री- पुरुष, बिना किसी भेद भाव से उंच नीच का विचार किए, एक-दूसरे पर रंग डालते है। इस दिन की सुबह, घर पर होली की शुभकामनाएं देने वाली की भीड लगी रहती है। जाने – पहचाने चेहरे भी होली के रंगों में छुपकर अनजाने से लगते है। होली पर बडों को सम्मान देने के लिये पैरों पर गुलाल लगा कर आशीर्वाद लिया जाता है। समान उम्र वाले गुलाल माथे पर लगा कर गले मिलते है। छोटों को स्नेह से गुलाल लगा दिया जाता है।
होली की विशेषता
भारत के सभी त्योहारों पर कोई न कोई खास पकवान बनाया जाता है। खाने के साथ अपनी खुशियों को मनाने का अलग उत्साह होता है। होली पर विशेष रुप से ठंडाई बनाई जाती है। जिसमें केसर, काजू, बादाम और ढेर सारा दूध मिलाकर इसे बेहद स्वादिष्ट बना दिया जाता है। ठंडाई के साथ ही बनती है, खोये की गुंजिया और साथ में कांजी इन सभी से होली की शुभकामनाएं देने वाले मेहमानों की आवभगत की जाती है। होली का मदमस्ती सूरज के चढने के साथ ही शुरू हो जाती है। होली खेलने वाली की टोलियां नाचती-गाती, ढोल- मृ्दंग बजाती, लोकगीत गाती सभी के घरों पर आती है। लोग टोली में शामिल हो जाती है, टोली बढती-बढती एक बडे झूंड में बदल जाती है। नाच -गाने के साथ ही होली टोलियों उत्साह और उमंगों का जोश चरम पर होता है। यह जोश सायंकाल तक सूरज ढलने के बाद ही उतरता है। होली की टोली के लोकगीतों में प्रेम के साथ साथ विरह का भाव भी देखने में आते है। इस दिन होली है की गूंज हर ओर से आ रही होती है.
होली भावनाओं की अभिव्यक्ति के साथ ही उमंगों से भरा त्योहार है। जहां आज लोगों की जीवनशैली आधुनिकता से परिपूर्ण, भागती दौड़ती जीवन की दिनचर्या बन गई है वहां यह त्योहार आज भी लोगों में जोश, उमंग, तरंग, उर्जा का संचार करता है। सभी को एक साथ उत्साहपूर्ण समय बीताने का अवसर प्रदान करता है। यह भारत के त्योहारों की सर्वोत्तम विशेषता एवं आभा है।
होलिका दहन का 9:15 बजे श्रेष्ठ समय
होलिका दहन 20 मार्च बुधवार को चतुर्दशी युक्त पूर्णिमा में मनाया जाएगा। ज्योतिषीयों के अनुसार 20 मार्च को रात 9 बजे तक भद्रा रहेगी। इससे होलिका दहन भद्रा के बाद 9:15 बजे श्रेष्ठ समय में किया जाएगा। होलिका दहन के समय चंद्रमा सिंह राशि में रहेगा। सिंह राशि का स्वामी सूर्य बुध का मित्र ग्रह होने से आपसी समता व प्रेम बढ़ेगा। गुरुवार 21 मार्च को रंगों का पर्व धुलंडी मनाई जाएगी।
