विश्व पर्यावरण दिवस संयुक्त राष्ट्र द्वारा सकारात्मक पर्यावरण कार्य हेतु दुनिया भर में मनाया जाने वाला सबसे बड़ा उत्सव है। पर्यावरण और जीवन का अन्योन्याश्रित संबंध है। यह दिवस मनाकर हम पर्यावरण के संरक्षण, संवर्धन और विकास का संकल्प लेते है।
पर्यावरण प्रदूषण की समस्या पर सन् 1972 में संयुक्त राष्ट्र संघ ने स्टाकहोम (स्वीडन) में विश्व भर के देशों का पहला पर्यावरण सम्मेलन आयोजित किया। इसमें 119 देशों ने भाग लिया और पहली बार एक ही पृथ्वी का सिद्धांत मान्य किया। इसी सम्मेलन में संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम का जन्म हुआ तथा प्रति वर्ष 5 जून को पर्यावरण दिवस आयोजित करके नागरिकों को प्रदूषण की समस्या से अवगत कराने का निश्चय किया गया। इसका मुख्य उद्देश्य पर्यावरण के प्रति जागरूकता लाते हुए राजनीतिक चेतना जागृत करना और आम जनता को प्रेरित करना था। उक्त गोष्ठी में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने पर्यावरण की बिगड़ती स्थिति एवं उसका विश्व के भविष्य पर प्रभाव विषय पर व्याख्यान दिया था। पर्यावरण-सुरक्षा की दिशा में यह भारत का प्रारंभिक कदम था।
पर्यावरण संरक्षण अधिनियम
भारत में 19 नवंबर 1986 से पर्यावरण संरक्षण अधिनियम लागू हुआ। तदनुसार जल, वायु, भूमि- इन तीनों से संबंधित कारक तथा मानव, पौधों, सूक्ष्म जीव, अन्य जीवित पदार्थ आदि पर्यावरण के अंतर्गत आते हैं। पर्यावरण संरक्षण अधिनियम के कई महत्त्वपूर्ण बिंदु हैं। इसमें पर्यावरण की गुणवत्ता के संरक्षण हेतु सभी आवश्यक कदम उठाना। पर्यावरण प्रदूषण के निवारण, नियंत्रण और उपशमन हेतु राष्ट्रव्यापी कार्यक्रम की योजना बनाना और उसे क्रियान्वित करना। पर्यावरण की गुणवत्ता के मानक निर्धारित करना। पर्यावरण सुरक्षा से संबंधित अधिनियमों के अंतर्गत राज्य-सरकारों, अधिकारियों और संबंधितों के काम में समन्वय स्थापित करना। ऐसे क्षेत्रों का परिसीमन करना, जहाँ किसी भी उद्योग की स्थापना अथवा औद्योगिक गतिविधियां संचालित न की जा सकें, आदि- आदि। उक्त-अधिनियम का उल्लंघन करने वालों के लिए कठोर दंड का प्रावधान भी है।
थीम 2019
इस साल मनाए जाने वाले विश्व पर्यावरण दिवस की थीम ”वायु प्रदूषण से मुकाबला” है। जिस हवा में हम सांस लेते हैं, वह हमारे दैनिक जीवन शैली विकल्पों पर निर्भर करती है। वायु प्रदूषण हमें किस तरह प्रभावित करता है, तथा हवा को साफ करने के लिए क्या किया जा सकता है, इस दिशा में कार्य करने के लिए अग्रसर होने की जरूरत है। उत्सर्जन प्रभाव कम करने, और ”करेंगे संग वायु प्रदूषण से जंग” के लिए कार्य करना है। 2019 विश्व पर्यावरण दिवस चीन द्वारा आयोजित किया जा रहा है।
वायु प्रदूषण के कारण और हम
हम कितनी प्रदूषित हवा में सांस लेते हैं, इस बात को विभिन्न कारकों द्वारा निर्धारित किया जाता है, जैसे कि क्या घर को गर्म रखने और खाना पकाने के लिए कम प्रदूषण करने वाला ईंधन की उपलब्धता, या फिर दिन का समय और मौसम, इत्यादि। ऑफिस जाने के समय या रश आवर्स (व्यस्त समय) में निश्चित रूप से स्थानीय प्रदूषण अधिक रहता है, लेकिन वायु प्रदूषण लंबी दूरियां तय कर सकता है, अंतर्राष्ट्रीय मौसम के पैटर्न के अनुसार यह कई बार महाद्वीपों को भी पार कर सकता है। पांच मुख्य मानव स्रोतों से पैदा होने वाले वायु प्रदूषण से बच पाना किसी के लिए भी संभव नहीं है। ये स्रोत कार्बन मोनोऑक्साइड, कार्बन डाइऑक्साइड, नाइट्रोजन डाइऑक्साइड, नाइट्रोजन ऑक्साइड, जमीनी ओजोन, पार्टिकुलेट मैटर या कणीय प्रदूषक, सल्फर डाइऑक्साइड, हाइड्रोकार्बन और सीसे सहित मानव स्वास्थ्य के लिए हानिकारक कई पदार्थों का उत्सर्जन करते हैं।
घरेलू प्रदूषक
घरेलू वायु प्रदूषण मुख्य रूप से खाना पकाने, घर को गर्म रखने और रोशनी की व्यवस्था करने के लिए जीवाश्म ईंधन, लकड़ी और अन्य बायोमास-आधारित ईंधन को जलाने से उत्पन्न होता है। हर साल दुनिया भर में घरेलू कारणों से उत्पन्न हुए वायु प्रदूषण के कारण 38 लाख अकाल मौतें होती हैं, जिनमें से अधिकतर मौतें विकासशील देशों में होती है। 193 देशों में से, 97 देशों ने 85 प्रतिशत से अधिक घरों में कम प्रदूषण फैलाने वाला ईंधन उपलब्ध करवाने में सफलता प्राप्त कर ली है। हालांकि आज भी, तीन अरब लोग खाना पकाने, घर को गर्म रखने और रोशनी की व्यवस्था के लिए ठोस ईंधन और खुली आग का उपयोग कर रहे हैं। कम प्रदूषण वाले और अधिक आधुनिक स्टोव और ईंधन को अपनाकर बीमारी के जोखिम को कम किया जा सकता है और बहुत सी जानें बचाई जा सकती है।
उद्योग
बहुत से देशों में, ऊर्जा उत्पादन वायु प्रदूषण का एक प्रमुख स्रोत है। एक तरफ जहां कोयले से चलने वाले बिजली संयत्र वायु प्रदूषण को बढ़ा रहे हैं, वहीं दूर दराज के क्षेत्रों में डीजल जनरेटर चिंता का विषय बने हुए हैं। रासायनिक और खनन उद्योगों में होने वाली औद्योगिक प्रक्रियाएं और काम आने वाले विलयन (साल्वेंट) भी वायु को प्रदूषित करते हैं। नवीकरणीय स्रोतों से ऊर्जा दक्षता और उत्पादन बढ़ाने के उद्देश्य से बनाई गई नीतियों और कार्यक्रमों का किसी भी देश की वायु गुणवत्ता पर सीधा प्रभाव पड़ता है। फिलहाल, 193 में से 82 देश नवीकरणीय ऊर्जा उत्पादन, प्रदूषण रहित उत्पादन, ऊर्जा दक्षता और प्रदूषण नियंत्रण में निवेश को बढ़ावा और प्रोत्साहन दे रहे हैं।
परिवहन
वैश्विक परिवहन क्षेत्र ऊर्जा से संबंधित कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन के लगभग एक चौथाई हिस्से के लिए जिम्मेदार है, और यह आंकड़ा लगातार बढ़ता ही जा रहा है। यह परिवहन उत्सर्जन लगभग 4 लाख लोगों की अकाल मृत्यु का कारण बनता है। परिवहन से उत्पन्न हुए वायु प्रदूषण से होने वाली मौतों में से लगभग आधी मौतें डीजल उत्सर्जन के कारण होती हैं, जबकि व्यस्त यातायात वाले क्षेत्रों में रहने वाले लोगों में मनोभ्रंश (डिमेंशिया) का निदान होने की संभावना सामान्य से 12 प्रतिशत अधिक होती है। अगर वाहनों से हो रहे उत्सर्जन को कम करने में सफलता मिले (विशेष रूप से शहरी क्षेत्रों में) तो यह वायु गुणवत्ता में सुधार की दिशा में उठाया गया एक महत्वपूर्ण कदम होगा। कम प्रदूषण फैलाने वाले ईंधन के उपयोग और उन्नत वाहन उत्सर्जन मानकों को बाध्य करने वाली नीतियां और मानक बनाकर वाहन उत्सर्जन को 90 प्रतिशत या उससे अधिक कम किया जा सकता है।
कचरा / अपशिष्ट
कचरे के मैदानों में खुले में कार्बनिक कचरा जलाने से हानिकारक डाइऑक्सिन, फ्युरान, मीथेन और ब्लैक कार्बन उत्सर्जित हो वायुमंडल में मिल जाते हैं। दुनिया भर में लगभग 40 प्रतिशत कचरा खुले में जलाया जाता है। यह समस्या शहरी क्षेत्रों और विकासशील देशों में और भी गंभीर हो गई है। 193 में से 166 देशों में कृषि और नगरीय कचरे को खुले में जलाया जाता है। ठोस कचरे के संग्रह, पृथक्करण और निपटान की प्रक्रिया को प्रभावी तरीके से प्रबंधित करके कचरे के मैदानों में जलाए जाने वाले कचरे की मात्रा कम की जा सकती है। जैविक कचरे को अलग करना और इसे खाद या जैव-उर्जा में बदल देना मिट्टी की उर्वरता में सुधार करता है और एक वैकल्पिक ऊर्जा स्रोत प्रदान करता है। इसके अलावा एक अनुमान के मुताबिक दुनिया भर में कुल खाने का एक तिहाई या तो फेंक दिया जाता है, या बेकार हो जाता है, इस आंकड़े को सुधारकर भी हवा की गुणवत्ता में सुधार किया जा सकता है।
