होली पर 203 सालों से यहां रहता है सन्नाटा:सती प्रथा की घटना के बाद से ग्रामीण न रंग खेलते हैं, न पकवान बनाते हैं

मुंगेर के असरगंज प्रखंड के सजुआ पंचायत में स्थित सती स्थान गांव में बीते 203 वर्षों से होली नहीं मनाई जाती। पूरे देश में जहां होली उल्लास और रंगों का पर्व होता है, वहीं इस गांव में त्योहार के दिन सन्नाटा पसरा रहता है। गांव के बुजुर्गों के अनुसार, यहां के लोग न रंग-गुलाल खेलते हैं और न ही पारंपरिक पकवान बनाते हैं। सती प्रथा से जुड़ी परंपरा गांव के बुजुर्गों के अनुसार, करीब दो शताब्दी पहले गांव में एक पतिव्रता महिला रहती थीं। फाल्गुन के महीने में उनके पति की मृत्यु हो गई, और वह सती हो गईं। ग्रामीण मानते हैं कि तब से यह स्थान पवित्र हो गया और इस दुखद घटना के कारण गांव में होली मनाने की प्रथा समाप्त हो गई। अनहोनी के डर से नहीं तोड़ी परंपरा गांव के वरिष्ठ नागरिक महेश प्रसाद सिंह, अधिक प्रसाद सिंह, बिंदेश्वरी सिंह और जलधर सिंह बताते हैं कि जो भी होली मनाने की कोशिश करता है, उसके घर में कोई अनहोनी घटना घट जाती है। कई बार लोगों ने इस परंपरा को तोड़ने की कोशिश की, लेकिन किसी के घर में आग लग गई तो किसी के परिवार में कोई अप्रिय घटना हो गई। यह भय इतना गहरा है कि गांव से बाहर जाकर बस चुके लोग भी होली नहीं मनाते। यहां तक कि आसपास के गांवों के लोग भी सती स्थान गांव के निवासियों पर रंग नहीं डालते। चैती रामनवमी पर बनते हैं पकवान गांव के लोगों के लिए रामनवमी का त्योहार विशेष महत्व रखता है। चैत्र मास की रामनवमी के अवसर पर यहां पकवान बनाए जाते हैं और धार्मिक अनुष्ठान किए जाते हैं। ग्रामीणों के सहयोग से सती स्थल पर एक मंदिर का निर्माण कराया गया, जहां लोग पूजा-अर्चना करने आते हैं। गांव के सबसे बुजुर्ग 83 वर्षीय शालिग्राम सिंह बताते हैं कि फाल्गुन के महीने में माता सती हुई थीं, इसलिए यह गांव होली से दूर रहता है। आज भी जीवंत है परंपरा गांव की यह परंपरा आज भी जीवंत है। चाहे वक्त कितना भी बदल गया हो, लेकिन सती स्थान गांव के लोग अपनी परंपरा को बनाए रखे हुए हैं। हर साल होली के दिन यह गांव निस्तब्ध और शांत रहता है, जहां न रंगों की मस्ती होती है और न ढोल-नगाड़ों की धुन सुनाई देती है। यह परंपरा गांव की संस्कृति और आस्था की मिसाल बनी हुई है। मुंगेर के असरगंज प्रखंड के सजुआ पंचायत में स्थित सती स्थान गांव में बीते 203 वर्षों से होली नहीं मनाई जाती। पूरे देश में जहां होली उल्लास और रंगों का पर्व होता है, वहीं इस गांव में त्योहार के दिन सन्नाटा पसरा रहता है। गांव के बुजुर्गों के अनुसार, यहां के लोग न रंग-गुलाल खेलते हैं और न ही पारंपरिक पकवान बनाते हैं। सती प्रथा से जुड़ी परंपरा गांव के बुजुर्गों के अनुसार, करीब दो शताब्दी पहले गांव में एक पतिव्रता महिला रहती थीं। फाल्गुन के महीने में उनके पति की मृत्यु हो गई, और वह सती हो गईं। ग्रामीण मानते हैं कि तब से यह स्थान पवित्र हो गया और इस दुखद घटना के कारण गांव में होली मनाने की प्रथा समाप्त हो गई। अनहोनी के डर से नहीं तोड़ी परंपरा गांव के वरिष्ठ नागरिक महेश प्रसाद सिंह, अधिक प्रसाद सिंह, बिंदेश्वरी सिंह और जलधर सिंह बताते हैं कि जो भी होली मनाने की कोशिश करता है, उसके घर में कोई अनहोनी घटना घट जाती है। कई बार लोगों ने इस परंपरा को तोड़ने की कोशिश की, लेकिन किसी के घर में आग लग गई तो किसी के परिवार में कोई अप्रिय घटना हो गई। यह भय इतना गहरा है कि गांव से बाहर जाकर बस चुके लोग भी होली नहीं मनाते। यहां तक कि आसपास के गांवों के लोग भी सती स्थान गांव के निवासियों पर रंग नहीं डालते। चैती रामनवमी पर बनते हैं पकवान गांव के लोगों के लिए रामनवमी का त्योहार विशेष महत्व रखता है। चैत्र मास की रामनवमी के अवसर पर यहां पकवान बनाए जाते हैं और धार्मिक अनुष्ठान किए जाते हैं। ग्रामीणों के सहयोग से सती स्थल पर एक मंदिर का निर्माण कराया गया, जहां लोग पूजा-अर्चना करने आते हैं। गांव के सबसे बुजुर्ग 83 वर्षीय शालिग्राम सिंह बताते हैं कि फाल्गुन के महीने में माता सती हुई थीं, इसलिए यह गांव होली से दूर रहता है। आज भी जीवंत है परंपरा गांव की यह परंपरा आज भी जीवंत है। चाहे वक्त कितना भी बदल गया हो, लेकिन सती स्थान गांव के लोग अपनी परंपरा को बनाए रखे हुए हैं। हर साल होली के दिन यह गांव निस्तब्ध और शांत रहता है, जहां न रंगों की मस्ती होती है और न ढोल-नगाड़ों की धुन सुनाई देती है। यह परंपरा गांव की संस्कृति और आस्था की मिसाल बनी हुई है।  

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