होली और जुमे की नमाज एक साथ:सहरसा के राजनपुर में मुस्लिम भाइयों ने नमाज के बाद खेली होली, एकता की मिसाल बनी

होली और जुमे की नमाज एक साथ:सहरसा के राजनपुर में मुस्लिम भाइयों ने नमाज के बाद खेली होली, एकता की मिसाल बनी

बिहार के सहरसा में होली के दौरान एक अनूठा नजारा देखने को मिला। होली का त्योहार और जुमे की नमाज एक ही दिन पड़ने पर हिंदू-मुस्लिम एकता की मिसाल कायम हुई। नमाज अदा करने के बाद खेली होली महिषी प्रखंड के राजनपुर गांव में मुस्लिम समुदाय ने जुमे की नमाज अदा करने के बाद होली के रंग में हिस्सा लिया। उन्होंने गुलाल उड़ाकर और रंग खेलकर भाईचारे का संदेश दिया। स्थानीय निवासी मोहम्मद रिजवान ने कहा कि भारत एकता की मिसाल है। उन्होंने होली को सिर्फ एक धर्म का त्योहार नहीं, बल्कि खुशियों और प्रेम का प्रतीक बताया। रिजवान ने कहा कि वे रंगों को भाईचारे का माध्यम मानते हैं। गंगा-जमुनी तहजीब की दिखी झलक गांव में हिंदू और मुस्लिम समुदाय के लोगों ने एक-दूसरे को गुलाल लगाया। चारों तरफ गंगा-जमुनी तहजीब की झलक दिखी। लोगों ने धार्मिक भेदभाव से ऊपर उठकर प्रेम और सौहार्द का परिचय दिया। सांप्रदायिक सौहार्द का बना उदाहरण राजनपुर गांव का यह आयोजन सांप्रदायिक सौहार्द का जीता-जागता उदाहरण बना। इस तरह सहरसा के लोगों ने साबित किया कि धर्म से बड़ा इंसानियत का रिश्ता होता है। उन्होंने देश को संदेश दिया कि भाईचारा और प्रेम ही हमारी असली पहचान है। बिहार के सहरसा में होली के दौरान एक अनूठा नजारा देखने को मिला। होली का त्योहार और जुमे की नमाज एक ही दिन पड़ने पर हिंदू-मुस्लिम एकता की मिसाल कायम हुई। नमाज अदा करने के बाद खेली होली महिषी प्रखंड के राजनपुर गांव में मुस्लिम समुदाय ने जुमे की नमाज अदा करने के बाद होली के रंग में हिस्सा लिया। उन्होंने गुलाल उड़ाकर और रंग खेलकर भाईचारे का संदेश दिया। स्थानीय निवासी मोहम्मद रिजवान ने कहा कि भारत एकता की मिसाल है। उन्होंने होली को सिर्फ एक धर्म का त्योहार नहीं, बल्कि खुशियों और प्रेम का प्रतीक बताया। रिजवान ने कहा कि वे रंगों को भाईचारे का माध्यम मानते हैं। गंगा-जमुनी तहजीब की दिखी झलक गांव में हिंदू और मुस्लिम समुदाय के लोगों ने एक-दूसरे को गुलाल लगाया। चारों तरफ गंगा-जमुनी तहजीब की झलक दिखी। लोगों ने धार्मिक भेदभाव से ऊपर उठकर प्रेम और सौहार्द का परिचय दिया। सांप्रदायिक सौहार्द का बना उदाहरण राजनपुर गांव का यह आयोजन सांप्रदायिक सौहार्द का जीता-जागता उदाहरण बना। इस तरह सहरसा के लोगों ने साबित किया कि धर्म से बड़ा इंसानियत का रिश्ता होता है। उन्होंने देश को संदेश दिया कि भाईचारा और प्रेम ही हमारी असली पहचान है।  

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