Rupee Hits Record Low: भारतीय मुद्रा रुपया, अमेरिकी डॉलर के मुकाबले अपने अब तक के सबसे निचले स्तर पर पहुंच गया है। शुक्रवार को करेंसी मार्केट में रुपया 86.60 प्रति डॉलर के ऐतिहासिक निचले स्तर पर आ गया है। निर्मल बंग इंस्टीटूशनल इक्विटीज ने अपनी एक रिपोर्ट में कहा है की एक डॉलर के मुकाबले रुपए का औसत रेट वित्त वर्ष 2025-26 में 88 के लेवल तक गिर सकता है।
ये भी पढ़े:- शतरंज के महारथी Gukesh Dommaraju ने 2024 में जीते 13.6 करोड़ रुपए, Trump की राष्ट्रपति सैलरी से चार गुना अधिक
रुपए में गिरावट के कारण (Rupee Hits Record Low)
रुपये की इस ऐतिहासिक गिरावट के पीछे कई प्रमुख कारक जिम्मेदार हैं। विशेषज्ञों के अनुसार, वैश्विक बाजार में डॉलर की मजबूती, विदेशी निवेशकों की बिकवाली, और कच्चे तेल की बढ़ती कीमतों ने रुपये पर दबाव बढ़ा दिया है। इसके अलावा, अमेरिकी ट्रेजरी यील्ड्स में उछाल और घरेलू बाजार में बढ़ती आर्थिक (Rupee Hits Record Low) अनिश्चितताओं ने भी भारतीय मुद्रा को कमजोर किया है।
डॉलर इंडेक्स में बढ़ोतरी
डॉलर इंडेक्स 109.98 के स्तर तक पहुंच चुका है, जो नवंबर 2022 के बाद का उच्चतम स्तर है। एक्सिस सिक्योरिटीज के रिसर्च प्रमुख अक्षय चिंचालकर के अनुसार, डॉलर की मजबूती और कच्चे तेल की कीमतों में वृद्धि ने रुपये (Rupee Hits Record Low) को कमजोर किया है। मार्च के अंत तक रुपये के 87 के स्तर तक पहुंचने की संभावना 80% है।
विदेशी मुद्रा भंडार में गिरावट
भारत का विदेशी मुद्रा भंडार भी तेजी से घटा है। 3 जनवरी 2025 को समाप्त सप्ताह में यह घटकर 634.58 अरब डॉलर रह गया, जबकि 27 सितंबर 2024 को यह 704.88 अरब डॉलर के रिकॉर्ड उच्च स्तर पर था। आरबीआई द्वारा रुपये की गिरावट (Rupee Hits Record Low) रोकने के लिए डॉलर बेचने के कारण यह कमी आई है।
रुपए की गिरावट से भारत की आयात लागत पर असर
विश्लेषकों का मानना है कि रुपये में गिरावट का सीधा असर भारत की आयात लागत पर पड़ेगा। विशेष रूप से, कच्चे तेल और अन्य आवश्यक वस्तुओं की बढ़ती कीमतें घरेलू महंगाई दर को बढ़ा सकती हैं। इसके अलावा, चालू खाता घाटा (CAD) बढ़ने की संभावना है, जिससे भारतीय अर्थव्यवस्था पर और अधिक दबाव पड़ सकता है।
विदेशी निवेशकों की निकासी
भारतीय शेयर बाजार से विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (FPI) द्वारा पूंजी की निकासी भी रुपये की कमजोरी में अहम भूमिका निभा रही है। बाजार विश्लेषकों के अनुसार, वैश्विक निवेशक भारतीय बाजार से अपनी पूंजी निकालकर डॉलर में निवेश कर रहे हैं, जिससे रुपये पर और दबाव (Rupee Hits Record Low) बढ़ रहा है।
कच्चे तेल की बढ़ती कीमतें
अंतरास्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतों में वृद्धि ने भारत के आयात खर्च को बढ़ा दिया है। इससे न केवल चालू खाता घाटा बढ़ रहा है, बल्कि घरेलू उपभोक्ताओं पर भी महंगाई का बोझ बढ़ रहा है।
ये भी पढ़े:- 17 जनवरी को खुलेगा EMA पार्टनर्स इंडिया का इश्यू, प्राइस बैंड फिक्स, यहां जानें पूरी डिटेल्स
सरकार और आरबीआई की रणनीति
रुपये की स्थिरता बनाए रखने के लिए सरकार और भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) कई कदम उठा रहे हैं। हालांकि, विशेषज्ञों का कहना है कि वैश्विक कारकों के प्रभाव को पूरी तरह खत्म करना आसान नहीं है। आरबीआई ने रुपये को स्थिर रखने के लिए विदेशी मुद्रा भंडार का उपयोग किया है, लेकिन इसकी भी एक सीमा है।
No tags for this post.