जिले के कॉलेजों में अवैध वसूली का खुला खेल चल रहा है। चंदे के नाम पर साल में दो बार 200 रुपए लिए जा रहे हैं। ऐसे में विद्यार्थियों के हर साल 400 रुपए खर्च करने पड़ रहे हैं। खास बात यह है कि स्वयंपाठी विद्यार्थियों को भी यह पैसा चुकाना पड़ रहा है, जबकि वो कॉलेज नहीं जाते हैं। यही नहीं चंदा नहीं देने पर परीक्षा फार्म तक जमा नहीं किया जाता है।
दरअसल, पहले विद्यार्थियों को साल में केवल एक बार ही 200 रुपए देने पड़ रहे थे, लेकिन एनईपी-2020 लागू होने के बाद सालभर में दो बार ( हर सेमेस्टर पर) चंदे की राशि जमा करवानी पड़ रही है। जिले में यूजी और पीजी में 35 हजार से ज्यादा विद्यार्थी कॉलेजों में दाखिला लेते हैं और प्रत्येक से 200 रुपए के हिसाब से एक सेमेस्टर से 70 लाख और दोनों सेमेस्टर से 1.40 करोड़ रुपए वसूले जा रहे हैं। विद्यार्थियों से यह शुल्क परीक्षा शुल्क के अतिरिक्त लिया जा रहा है।
कॉलेजों को विश्वविद्यालय देता है पैसा
विश्वविद्यालय के आदेश में साफ किया गया है कि स्नातक व स्नातकोत्तर में प्रायोगिक विषयों का चयन करने वाले स्वयंपाठी विद्यार्थियों से प्रति विषय निर्धारित प्रायोगिक प्रशिक्षण शुल्क आवेदन पत्र के साथ ही ऑनलाइन जमा करवाना होगा। वहीं, विश्वविद्यालय की ओर से परीक्षा फार्म का 8 रुपए प्रति विद्यार्थी के रूप में कॉलेज को दिया जा रहा है, फिर भी 200 रुपए यह परीक्षा शुल्क की रसीद के साथ वसूल रहे हैं।
रसीद में यह लिखा
पैसा लेकर विद्यार्थियों को जो रसीद दी जा रही है, उसमें विकास समिति शुल्क, चंदा, दान, सहायता राशि का उल्लेख किया गया है। उधर, एक छात्रा ने बताया कि मेरे पास केवल परीक्षा शुल्क की रसीद थी। मैंने फार्म जमा करवाना चाहा तो 200 रुपए चंदे के रूप में रसीद कटवाने को बोला गया। मैंने मना किया तो बहस करना शुरू कर दिया है। कॉलेज प्राचार्य ने भी पल्ला झाड़ लिया। हेल्प डेस्क पर फोन किया तो उन्होंने बोला की हमें कोई मतलब नहीं है, मामले को कॉलेज देखेगा।
कॉलेज में परीक्षा देने वाले विद्यार्थियों के लिए विकास शुल्क के रूप में 200 रुपए लिए जा रहे हैं। इसके साथ ही इन रुपए से मेंटीनेंस करवाया जाता है। – डॉ. मंजू यादव, प्राचार्य, जीडी कॉलेज
यह भी पढ़ें:
अलवर शहर में बिक रही प्रतिबंधित ई-सिगरेट, युवा लगा रहे कश