बड़ौदा क्रिकेट एसोसिएशन ने सीनियर एडवोकेट श्रीनिवासन गणेश को पेशेवर फीस के रूप में 64 लाख रुपये से अधिक का भुगतान करने के आदेश को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है।
Baroda Cricket Association, Supreme Court: बड़ौदा क्रिकेट एसोसिएशन ने सुप्रीम कोर्ट का रुख करते हुए ‘सीनियर एडवोकेट की फीस’ से जुड़े एक मामले में दिल्ली हाई कोर्ट के आदेश को चुनौती दी है। हाई कोर्ट के आदेश में एसोसिएशन को सीनियर एडवोकेट श्रीनिवासन गणेश को पेशेवर फीस के रूप में 64 लाख रुपये से अधिक का भुगतान करने के लिए कहा गया है। यह आदेश दिल्ली हाई कोर्ट द्वारा 22 अगस्त, 2024 को जारी किया गया था।
21 जनवरी को जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस आर महादेवन की पीठ ने दोनों पक्षों से मामले को सुलझाने का आग्रह किया। इससे पहले नवंबर, 2024 में न्यायालय ने दिल्ली हाई कोर्ट के आदेश पर रोक लगाते हुए सीनियर एडवोकेट को 64,35,000 रुपये का भुगतान करने से माना कर दिया था।
क्या है पूरा विवाद –
विवाद सुप्रीम कोर्ट में बड़ौदा क्रिकेट एसोसिएशन से जुड़े एक टैक्स मामले में पेशी को लेकर है। एसोसिएशन का दावा है कि चार्टर्ड अकाउंटेंट फर्म केसी मेहता एंड कंपनी के कहने पर एडवोकेट श्रीनिवासन गणेश एक बार जूम कॉल के माध्यम से एक परिचयात्मक कॉन्फ्रेंस में जुड़े थे। लेकिन उसके बाद वे कभी किसी पेशी में नहीं आए और उनकी उपस्थिति के बिना ही मामला सुलझ गया। एसोसिएशन का दावा है कि गणेश की नियुक्ति नहीं की गई थी और उन्हें कभी कसी पेशी में उपस्थित होने के निर्देश भी नहीं दिये गए। ऐसे में एडवोकेट ने बिना किसी निर्देश के वर्चुअल सुनवाई के लिए लॉग इन कर लिया और अब फीस मांग रहे हैं।
2022 में एडवोकेट गणेश ने 64,35,000 रुपये की फीस की मांग करते हुए साकेत जिला न्यायालय में बड़ौदा क्रिकेट एसोसिएशन के खिलाफ मुकदमा दायर किया। जिसके बाद एसोसिएशन ने बचाव के लिए अनुमति मांगने के लिए एक आवेदन दायर किया जिसे जिला न्यायालय द्वारा मंजूर कर लिया गया। वरिष्ठ वकील ने बचाव के लिए अनुमति देने वाले आदेश को चुनौती देते हुए दिल्ली हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया।
22 अगस्त, 2024 को दिल्ली हाईकोर्ट ने बचाव के लिए अनुमति देने वाले जिला न्यायालय के आदेश को खारिज कर दिया। हाईकोर्ट ने कहा कि एसोसिएशन का बचाव तुच्छ और परेशान करने वाला है। हाईकोर्ट ने कहा कि के.सी. मेहता एंड कंपनी ने एसोसिएशन के अधिकृत एजेंट के रूप में काम किया है और जब उन्होंने सीनियर एडवोकेट को नियुक्त किया था तब फीस को लेकर भी मजूरी दे दी थी। ऐसे में के.सी. मेहता एंड कंपनी अपने दायित्वों से बच नहीं सकती।
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