विधानसभा चुनाव से पहले बिहार कांग्रेस में बड़ा बदलाव किया गया है। कांग्रेस हाईकमान ने अखिलेश सिंह को प्रदेश अध्यक्ष पद से हटा दिया है। उनकी जगह पार्टी के विधायक राजेश कुमार को नया प्रदेश अध्यक्ष नियुक्त किया गया है। राजेश कुमार दलित समुदाय से आते हैं। पार्टी ने उन्हें अध्यक्ष बनाकर सामाजिक संतुलन साधने की कोशिश की है। कांग्रेस के इस फैसले को आगामी चुनावों की रणनीति से भी जोड़कर देखा जा रहा है। अखिलेश सिंह को हटाने की वजह पार्टी के अंदरूनी मतभेद और प्रदेश इकाई में लगातार उठ रहे असंतोष को माना जा रहा है। राजेश कुमार के नेतृत्व में पार्टी अब नई रणनीति के तहत काम करेगी। दलित वोट बैंक को वापस लाने की कोशिश राजेश कुमार औरंगाबाद के कुटंबा से विधायक हैं। चिराग पासवान और जीतन राम मांझी के जरिए एनडीए ने कांग्रेस का दलित वोट बैंक तोड़ दिया है। कांग्रेस ने इसे वापस लाने की कोशिश की है। पिछले प्रभारी भक्त चरण दास ने इन्हें प्रदेश अध्यक्ष बनाने की कोशिश की थी। जानिए अखिलेश सिंह पर कौन-कौन से आरोप लगे 1. सेल्फ इंटरेस्ट में राजनीति की अखिलेश सिंह पर यह आरोप लग रहा है कि उन्होंने सेल्फ इंटरेस्ट में पॉलिटिक्स की। उनका राज्यसभा का टर्म पूरा हो गया था, वे चाहते तो किसी अन्य कांग्रेसी को मौका दे सकते थे, लेकिन दोबारा कांग्रेस से राज्यसभा गए। बेटे आकाश को महाराजगंज से टिकट दिलवाया। आकाश, बीजेपी नेता जनार्दन सिंह सिग्रीवाल से हार गए। ये राजपूत-भूमिहार बहुल इलाका है। किसान कांग्रेस के प्रदेश उपाध्यक्ष धीरेंद्र कुमार सिंह ने पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष डॉ. अखिलेश प्रसाद सिंह पर बड़े और गंभीर आरोप जून माह में लगाए थे। उन्होंने पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे को पत्र लिखा था। जिसमें उन्होंने गंभीर आरोप लगाते हुए कहा कि टिकट बंटवारे में लेन-देन किया गया। साथ ही बाहरी प्रत्याशी को टिकट दिया। गलत नीति और राजद से प्रेम के चलते ही पार्टी को बिहार में तीन सीटों पर संतोष करना पड़ा। कांग्रेस को नौ में से सात सीटों पर जीत तय थी। 2. अगड़ी जाति का वोट ट्रांसफर नहीं करा पाए कांग्रेस से 9 उम्मीदवारों को टिकट दिया गया था। नौ में से चार सीटों पर नेताओं के बेटे को लड़वाया गया। तीन उम्मीदवार ऐसे थे, जिन्होंने कभी न कभी पाला बदला था। अंशुल अविजीत, मीरा कुमार के बेटे हैं, वे पटना साहिब से चुनाव लड़े। सन्नी हजारी को समस्तीपुर से टिकट मिला। उनके पिता महेश्वर हजारी जेडीयू से सरकार में मंत्री थे और कांग्रेस का टिकट बेटे आकाश सिंह को मिल गया। अखिलेश सिंह के बेटे आकाश को महाराजगंज से टिकट मिला था। अजय निषाद को मुजफ्फरपुर से टिकट मिला। वे चुनाव से पहले बीजेपी से कांग्रेस में शामिल हुए थे। उनके पिता कैप्टन जयनारायण निषाद मुजफ्फरपुर से दो बार सांसद रह चुके थे। सभी नेताओं के बेटे चुनाव हार गए। मनोज कुमार को सासाराम से टिकट मिला। वे बसपा से कांग्रेस में आए थे। अजीत शर्मा को भागलपुर से टिकट मिला, वे भागलपुर के विधायक हैं। लेकिन 2009 में अजीत शर्मा बसपा से चुनाव लड़े थे। तारिक अनवर को कटिहार से टिकट मिला था। उन्होंने तो कांग्रेस छोड़ शरद पवार के साथ मिलकर एनसीपी बना ली थी। कटिहार से एनसीपी के टिकट पर सांसद भी रह चुके हैं। टिकट बंटवारे पर कई तरह से सवाल उठे। इससे यह भी मैसेज गया कि राजपूतों-भूमिहारों का वोट ट्रांसफर कराने में अखिलेश असफल रहे। 3. लालू प्रसाद के करीबी अखिलेश प्रसाद सिंह ने कांग्रेस मुख्यालय सदाकत आश्रम में श्री कृष्ण सिंह की जयंती का भव्य आयोजन किया था। उसमें आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव मुख्य अतिथि थे। लालू प्रसाद ने मंच से कहा कि था कि ‘अखिलेश प्रसाद सिंह को पहली बार मैंने ही राज्यसभा भेजवाया। इसके लिए जेल से ही फोन पर सोनिया गांधी से पैरवी की।’ ऐसे भी लालू प्रसाद और अखिलेश प्रसाद सिंह की निकटता काफी रही है। पार्टी के अंदर और बाहर कई नेता ऐसा मानते हैं कि बिहार में कांग्रेस इसलिए मजबूत नहीं हो पा रही कि लालू प्रसाद नहीं चाहते। इसका उदाहरण लोकसभा चुनाव में भी देखने को मिला। पप्पू यादव ने अपनी पार्टी जाप का विलय कांग्रेस में कर दिया, लेकिन पप्पू यादव को मनचाही जगह पूर्णिया से कांग्रेस टिकट नहीं दे पाई। लालू प्रसाद ने जेडीयू से आरजेडी में लाकर बीमा भारती को पूर्णिया से आरजेडी का टिकट दे दिया। कांग्रेस देखती रह गई। पप्पू यादव निर्दलीय लड़कर जीत गए। 4. संगठन के लोगों को साध नहीं पाए दो साल पहले अखिलेश प्रसाद सिंह को ऐसे समय में कांग्रेस का प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया था, जब इनके पास इतना समय था कि वे लोकसभा चुनाव और विधान सभा चुनाव की बेहतर तैयारी करते। लेकिन, हुआ यह कि कांग्रेस को विधान सभा में टूट से नहीं बचा सके। कांग्रेस के दो विधायकों ने पार्टी का साथ छोड़ दिया था। पूर्व मंत्री और विधायक मुरारी गौतम और विधायक सिद्धार्थ गौतम ने बगावत कर दिया। अखिलेश प्रसाद बिहार कांग्रेस की प्रदेश कमेटी का गठन अब तक नहीं कर पाए हैं। पूर्व राज्यपाल निखिल कुमार की नाराजगी भी लोकसभा चुनाव के समय दिखी थी। लोकसभा चुनाव के बाद कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष और लालू प्रसाद के धुर विरोधी नेता अनिल शर्मा ने कांग्रेस छोड़ बीजेपी जॉइन कर लिया। कांग्रेस के प्रदेश प्रवक्ता असित नाथ तिवारी ने भी कांग्रेस छोड़ बीजेपी में जाना सही समझा। 5. जमीनी स्तर पर कमजोर पकड़ जमीनी स्तर पर अखिलेश सिंह की कमजोर पकड़ है। यही वजह है कि लोकसभा का चुनाव लड़ने की बजाय दो बार राज्यसभा जाना सही समझा। बेटे को पिछली बार भी लोकसभा चुनाव में नहीं जितवा पाए थे। इस बार भी आकाश की हार हुई। संगठन के निचले स्तर के नेताओं-कार्यकर्ताओं को मिलने में भी कठिनाई होती रही है। अखिलेश प्रसाद सिंह लोकसभा सहित कई सदनों के सदस्य रह चुके हैं, लेकिन अब की राजनीति में उनकी रणनीति से पार्टी बिहार विधानसभा में कमजोर हुई है। ——— ये भी पढ़ें… ‘B’ नहीं इस बार ‘A’ टीम बनकर चुनाव लड़ेगी कांग्रेस’:प्रदेश प्रभारी बोले-सीट शेयरिंग पर अभी चर्चा नहीं; राजद का जवाब- लालू-सोनिया सब तय करेंगे बिहार विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस पार्टी अपने स्तर पर चुनावी तैयारियों में जुट गई है। कांग्रेस के प्रदेश प्रभारी कृष्णा अल्लावरू 13 दिन में रविवार को तीसरी बार बिहार पहुंचे। कृष्णा अल्लावरू से पटना एयरपोर्ट पर जब सवाल किया गया, ‘कांग्रेस के लिए कहा जाता है कि राजद की B टीम बनकर काम करती है।’ पूरी खबर पढ़िए विधानसभा चुनाव से पहले बिहार कांग्रेस में बड़ा बदलाव किया गया है। कांग्रेस हाईकमान ने अखिलेश सिंह को प्रदेश अध्यक्ष पद से हटा दिया है। उनकी जगह पार्टी के विधायक राजेश कुमार को नया प्रदेश अध्यक्ष नियुक्त किया गया है। राजेश कुमार दलित समुदाय से आते हैं। पार्टी ने उन्हें अध्यक्ष बनाकर सामाजिक संतुलन साधने की कोशिश की है। कांग्रेस के इस फैसले को आगामी चुनावों की रणनीति से भी जोड़कर देखा जा रहा है। अखिलेश सिंह को हटाने की वजह पार्टी के अंदरूनी मतभेद और प्रदेश इकाई में लगातार उठ रहे असंतोष को माना जा रहा है। राजेश कुमार के नेतृत्व में पार्टी अब नई रणनीति के तहत काम करेगी। दलित वोट बैंक को वापस लाने की कोशिश राजेश कुमार औरंगाबाद के कुटंबा से विधायक हैं। चिराग पासवान और जीतन राम मांझी के जरिए एनडीए ने कांग्रेस का दलित वोट बैंक तोड़ दिया है। कांग्रेस ने इसे वापस लाने की कोशिश की है। पिछले प्रभारी भक्त चरण दास ने इन्हें प्रदेश अध्यक्ष बनाने की कोशिश की थी। जानिए अखिलेश सिंह पर कौन-कौन से आरोप लगे 1. सेल्फ इंटरेस्ट में राजनीति की अखिलेश सिंह पर यह आरोप लग रहा है कि उन्होंने सेल्फ इंटरेस्ट में पॉलिटिक्स की। उनका राज्यसभा का टर्म पूरा हो गया था, वे चाहते तो किसी अन्य कांग्रेसी को मौका दे सकते थे, लेकिन दोबारा कांग्रेस से राज्यसभा गए। बेटे आकाश को महाराजगंज से टिकट दिलवाया। आकाश, बीजेपी नेता जनार्दन सिंह सिग्रीवाल से हार गए। ये राजपूत-भूमिहार बहुल इलाका है। किसान कांग्रेस के प्रदेश उपाध्यक्ष धीरेंद्र कुमार सिंह ने पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष डॉ. अखिलेश प्रसाद सिंह पर बड़े और गंभीर आरोप जून माह में लगाए थे। उन्होंने पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे को पत्र लिखा था। जिसमें उन्होंने गंभीर आरोप लगाते हुए कहा कि टिकट बंटवारे में लेन-देन किया गया। साथ ही बाहरी प्रत्याशी को टिकट दिया। गलत नीति और राजद से प्रेम के चलते ही पार्टी को बिहार में तीन सीटों पर संतोष करना पड़ा। कांग्रेस को नौ में से सात सीटों पर जीत तय थी। 2. अगड़ी जाति का वोट ट्रांसफर नहीं करा पाए कांग्रेस से 9 उम्मीदवारों को टिकट दिया गया था। नौ में से चार सीटों पर नेताओं के बेटे को लड़वाया गया। तीन उम्मीदवार ऐसे थे, जिन्होंने कभी न कभी पाला बदला था। अंशुल अविजीत, मीरा कुमार के बेटे हैं, वे पटना साहिब से चुनाव लड़े। सन्नी हजारी को समस्तीपुर से टिकट मिला। उनके पिता महेश्वर हजारी जेडीयू से सरकार में मंत्री थे और कांग्रेस का टिकट बेटे आकाश सिंह को मिल गया। अखिलेश सिंह के बेटे आकाश को महाराजगंज से टिकट मिला था। अजय निषाद को मुजफ्फरपुर से टिकट मिला। वे चुनाव से पहले बीजेपी से कांग्रेस में शामिल हुए थे। उनके पिता कैप्टन जयनारायण निषाद मुजफ्फरपुर से दो बार सांसद रह चुके थे। सभी नेताओं के बेटे चुनाव हार गए। मनोज कुमार को सासाराम से टिकट मिला। वे बसपा से कांग्रेस में आए थे। अजीत शर्मा को भागलपुर से टिकट मिला, वे भागलपुर के विधायक हैं। लेकिन 2009 में अजीत शर्मा बसपा से चुनाव लड़े थे। तारिक अनवर को कटिहार से टिकट मिला था। उन्होंने तो कांग्रेस छोड़ शरद पवार के साथ मिलकर एनसीपी बना ली थी। कटिहार से एनसीपी के टिकट पर सांसद भी रह चुके हैं। टिकट बंटवारे पर कई तरह से सवाल उठे। इससे यह भी मैसेज गया कि राजपूतों-भूमिहारों का वोट ट्रांसफर कराने में अखिलेश असफल रहे। 3. लालू प्रसाद के करीबी अखिलेश प्रसाद सिंह ने कांग्रेस मुख्यालय सदाकत आश्रम में श्री कृष्ण सिंह की जयंती का भव्य आयोजन किया था। उसमें आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव मुख्य अतिथि थे। लालू प्रसाद ने मंच से कहा कि था कि ‘अखिलेश प्रसाद सिंह को पहली बार मैंने ही राज्यसभा भेजवाया। इसके लिए जेल से ही फोन पर सोनिया गांधी से पैरवी की।’ ऐसे भी लालू प्रसाद और अखिलेश प्रसाद सिंह की निकटता काफी रही है। पार्टी के अंदर और बाहर कई नेता ऐसा मानते हैं कि बिहार में कांग्रेस इसलिए मजबूत नहीं हो पा रही कि लालू प्रसाद नहीं चाहते। इसका उदाहरण लोकसभा चुनाव में भी देखने को मिला। पप्पू यादव ने अपनी पार्टी जाप का विलय कांग्रेस में कर दिया, लेकिन पप्पू यादव को मनचाही जगह पूर्णिया से कांग्रेस टिकट नहीं दे पाई। लालू प्रसाद ने जेडीयू से आरजेडी में लाकर बीमा भारती को पूर्णिया से आरजेडी का टिकट दे दिया। कांग्रेस देखती रह गई। पप्पू यादव निर्दलीय लड़कर जीत गए। 4. संगठन के लोगों को साध नहीं पाए दो साल पहले अखिलेश प्रसाद सिंह को ऐसे समय में कांग्रेस का प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया था, जब इनके पास इतना समय था कि वे लोकसभा चुनाव और विधान सभा चुनाव की बेहतर तैयारी करते। लेकिन, हुआ यह कि कांग्रेस को विधान सभा में टूट से नहीं बचा सके। कांग्रेस के दो विधायकों ने पार्टी का साथ छोड़ दिया था। पूर्व मंत्री और विधायक मुरारी गौतम और विधायक सिद्धार्थ गौतम ने बगावत कर दिया। अखिलेश प्रसाद बिहार कांग्रेस की प्रदेश कमेटी का गठन अब तक नहीं कर पाए हैं। पूर्व राज्यपाल निखिल कुमार की नाराजगी भी लोकसभा चुनाव के समय दिखी थी। लोकसभा चुनाव के बाद कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष और लालू प्रसाद के धुर विरोधी नेता अनिल शर्मा ने कांग्रेस छोड़ बीजेपी जॉइन कर लिया। कांग्रेस के प्रदेश प्रवक्ता असित नाथ तिवारी ने भी कांग्रेस छोड़ बीजेपी में जाना सही समझा। 5. जमीनी स्तर पर कमजोर पकड़ जमीनी स्तर पर अखिलेश सिंह की कमजोर पकड़ है। यही वजह है कि लोकसभा का चुनाव लड़ने की बजाय दो बार राज्यसभा जाना सही समझा। बेटे को पिछली बार भी लोकसभा चुनाव में नहीं जितवा पाए थे। इस बार भी आकाश की हार हुई। संगठन के निचले स्तर के नेताओं-कार्यकर्ताओं को मिलने में भी कठिनाई होती रही है। अखिलेश प्रसाद सिंह लोकसभा सहित कई सदनों के सदस्य रह चुके हैं, लेकिन अब की राजनीति में उनकी रणनीति से पार्टी बिहार विधानसभा में कमजोर हुई है। ——— ये भी पढ़ें… ‘B’ नहीं इस बार ‘A’ टीम बनकर चुनाव लड़ेगी कांग्रेस’:प्रदेश प्रभारी बोले-सीट शेयरिंग पर अभी चर्चा नहीं; राजद का जवाब- लालू-सोनिया सब तय करेंगे बिहार विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस पार्टी अपने स्तर पर चुनावी तैयारियों में जुट गई है। कांग्रेस के प्रदेश प्रभारी कृष्णा अल्लावरू 13 दिन में रविवार को तीसरी बार बिहार पहुंचे। कृष्णा अल्लावरू से पटना एयरपोर्ट पर जब सवाल किया गया, ‘कांग्रेस के लिए कहा जाता है कि राजद की B टीम बनकर काम करती है।’ पूरी खबर पढ़िए
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