Madras High Court: मद्रास हाईकोर्ट ने अनुकंपा नियुक्ति के एक मामले में सुनवाई के दौरान सरकार के हर अंग में व्याप्त भ्रष्टाचार पर कड़ा रुख अपनाया है। जस्टिस आर. सुब्रमण्यम और जस्टिस जी. अरुल मुरुगन की खंडपीठ ने कहा कि भ्रष्टाचार एक ऐसा खतरा बन चुका है, जिसे रोकने में अदालतें भी असहाय महसूस करती हैं। कोर्ट ने अनुकंपा नियुक्ति के लिए 34 महीने तक लंबित रखे गए एक आवेदन पर सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की।
अनुकंपा नियुक्ति से जुड़ा मामला
मामला राजमार्ग विभाग में कार्यरत एक कर्मचारी की मृत्यु के बाद उनकी पत्नी द्वारा अनुकंपा नियुक्ति के लिए दिए गए आवेदन से जुड़ा है। कोर्ट को बताया गया कि महिला का आवेदन 34 महीने तक लंबित रहा और बाद में उनसे दोबारा सत्यापित प्रमाण पत्र जमा करने को कहा गया। इस बीच, मृत कर्मचारी के बेटे ने भी अनुकंपा नियुक्ति के लिए आवेदन दिया, जिसे खारिज कर दिया गया।
कोर्ट ने की टिप्पणी
हाईकोर्ट की बेंच ने इस प्रक्रिया पर सवाल उठाते हुए कहा कि बार-बार सत्यापित दस्तावेज मांगना केवल अधिकारियों को अवैध लाभ कमाने का अवसर प्रदान करता है। कोर्ट ने टिप्पणी की, “हमें पूरा यकीन है कि तीन नए प्रमाण पत्र मांगने की शर्त केवल अधिकारियों द्वारा अनुचित लाभ कमाने के लिए लगाई गई है।”
भ्रष्टाचार पर बोली कोर्ट
अदालत ने मृत कर्मचारी की पत्नी के आवेदन में अनावश्यक देरी को गलत ठहराया और प्रशासन को निर्देश दिया कि महिला को तत्काल अनुकंपा नियुक्ति प्रदान की जाए। इस आदेश के साथ कोर्ट ने याचिका का निपटारा कर दिया। यह फैसला न केवल अनुकंपा नियुक्ति के मामलों में देरी पर सख्त रवैया दर्शाता है, बल्कि सरकारी तंत्र में भ्रष्टाचार की गहरी जड़ों को भी उजागर करता है। कोर्ट की यह टिप्पणी भविष्य में ऐसी प्रक्रियाओं में पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम मानी जा रही है।
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