दुनिया के इस गांव में नहीं निकलती धूप, लोगों ने धरती पर उतार दिया ‘सूरज’, जुगाड़ देखकर फटी रह जाएंगी आंखें   

दुनिया के इस गांव में नहीं निकलती धूप, लोगों ने धरती पर उतार दिया ‘सूरज’, जुगाड़ देखकर फटी रह जाएंगी आंखें   

Trending: सर्दियों या बरसात के मौसम में दो-तीन दिनों तक धूप ना निकले तो आम लोगों को हाल बेहाल हो जाता है। सर्दी बढ़ जाती है, मौसम में नमी आ जाती है, सब कुछ भीगा हुआ सा लगता है, वहीं पेड़-पौधे, पशु-पक्षी तक परेशान हो जाते हैं, लेकिन क्या आप जानते हैं जहां आप सिर्फ दो-तीन दिनों में बिना धूप के परेशान हो जाते हैं, वहीं दुनिया में एक ऐसा गांव है जहां पर धूप निकलती ही नहीं है। जी हां, इटली के विगनेला गांव (Viganella) में कभी भी सूरज की रोशनी नहीं पहुंच पाती। लेकिन गांव के लोगों ने इस समस्या से निपटने के लिए ऐसा जुगाड़ बनाया, जिसे देखकर आपकी आंखें फटी की फटी रह जाएंगी। 

क्यों नहीं पहुंचती धूप

Vice News की एक रिपोर्ट के मुताबिक इटली का ये विगनेला गांव स्विट्जरलैंड और इटली के बीच एक गहरी घाटी के तल पर बसा हुआ है। 13वीं शताब्दी में इस गांव में लोगों का बसना शुरू हुआ था। इस गांव के चारों तरफ ऊंचे-ऊंचे पहाड़ हैं। इसलिए इस गांव में सूरज (Sun) की बहुत कम रोशनी पहुंच पाती है। यहां तक की (Italian village built own sun) आज तक गांव वालों ने अपने गांव के ऊपर कभी सूरज को नहीं देखा। सबसे ज्यादा समस्या 11 नवंबर से लेकर 2 फरवरी के बीच रहती है। बगैर सूरज की रोशनी के गांव वालों को बहुत सी मुश्किलों का सामना करना पड़ा। 

विशाल कांच के शीशे को बना डाला ‘सूरज’

गांव वालों ने इस समस्या से निपटने के लिए तरकीब खोजनी शुरू की तो साल 1999 में विगनेला के स्थानीय आर्किटेक्ट जियाकोमो बोन्ज़ानी ने चर्च की दीवार पर एक धूपघड़ी लगाने का प्रस्ताव रखा। लेकिन तब तत्कालीन मेयर फ्रेंको मिडाली ने इस प्रस्ताव को खारिज कर आर्किटेक्ट को कुछ ऐसा बनाने को कहा, जिससे पूरे साल गांव में धूप पड़ती रहे। तब एक बड़े कांच के शीशे को बनाने का प्रस्ताव रखा गया जिससे इसकी सतह पर सूरज की रोशनी पड़े क्योंकि जब उस रोशनी की किरणें सतह से परावर्तित होंगी तो पूरा गांव चमक जाएगा और प्रकाश पहुंच जाएगा। 

1 करोड़ रुपए की लागत से बना शीशा

इसके बाद आर्किटेक्ट बोन्ज़ानी और इंजीनियर गियानी फेरारी ने मिलकर इस शीशे को तैयार किया। इसकी चौड़ाई 8 मीटर और लंबाई 5 मीटर रखी गई। इस  शीशे का निर्माण 1,00,000 यूरो यानी लगभग 1 करोड़ रुपए की लागत से पूरा हुआ। 17 दिसंबर, 2006 को ये शीशा बनकर तैयार हो गया। इस विशाल शीशे को गांव में पहाड़ की एक ऐसी चोटी पर लगाया गया जहां से शीशे से सूरज की रोशनी गांव के मुख्य चौराहे पर पड़ती है। इस शीशे को कंप्यूटर से ऑपरेट किया जाता है। 

इस विशाल शीशे में एक सॉफ्टवेयर प्रोग्राम भी लगाया गया है। जिससे ये शीशा सूरज के पथ के हिसाब से घूमता है। इस तरह इस शीशे से 6 घंटे तक सूरज की रोशनी रिफ्लेक्ट होकर आने लगी। सर्दी के मौसम में इस शीशे का प्रयोग किया जाता है वहीं गर्मी के सीजन में इस शीशे को ढक दिया जाता है।

पूरी दुनिया ने गांव वालों के इस जुगाड़ का मान था लोहा

विगनेला गांव की इस तरकीब का जब आस-पड़ोसे से होते हुए पूरी दुनिया को पता चला तो लोगों को इस बात पर विश्वास नहीं हुआ। इस शीशे का 2020 में दस्तावेजीकरण किया गया। गांव वालों की इस तकनीक से प्रभावित होकर 2013 में दक्षिण-मध्य नॉर्वे की एक घाटी में स्थित रजुकन में विगनेला की तरह की एक मिरर लगाया गया।

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