नागौर. महाशिवरात्रि 26 फरवरी को श्रवण नक्षत्र के साथ शुभ परिध के संयोग में मनाई जाएगी। रमल ज्योतिर्विद आचार्य दिनेश प्रेम शर्मा के अनुसार शुभ नक्षत्रों के संयोग में महाशिवरात्रि विशेष रूप से फलदायी रहेगी। वैदिक मान्यताओं के अनुसार, भगवान शंकर यानि की स्वयं शिव ही चतुर्दशी तिथि के स्वामी हैं। यही वज़ह है कि प्रत्येक माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मासिक शिवरात्रि के रूप में मनाया जाता है। ज्योतिष शास्त्रों में चतुर्दशी तिथि को अत्यंत शुभ कहा गया है। गणित ज्योतिष की गणना के मुताबिक, महाशिवरात्रि के समय सूर्य उत्तरायण में होते हैं, साथ ही ऋतु-परिवर्तन भी हो रहा होता है। ज्योतिष के अनुसार ऐसी भी मान्यता है कि चतुर्दशी तिथि को चंद्रमा अत्यंत कमज़ोर होते हैं। भगवान शिव ने चन्द्रमा को अपने मस्तक पर धारण किया हुआ है। इसलिए शिव की पूजा एवं उपासना से व्यक्ति का चंद्र मज़बूत होता है। चंद्रमा जो मन का प्रतिनिधित्व करता है। लिंग पुराण में महाशिवरात्रि के महत्व का वर्णन किया गया है। ऐसी मान्यता है कि, इस रात को महादेव ने तांडव नृत्य का प्रदर्शन किया था। एक अन्य पौराणिक मान्यता के अनुसार ऐसा माना जाता है कि इस दिन भगवान शिव और देवी पार्वती का विवाह हुआ था। हालांकि शिवरात्रि के दिन भद्रा काल भी रहेगा, लेकिन पाताल भद्रा कि वजह से इस पर कोई प्रभाव नहीं देखने को मिलेगा। ज्योतिष के अनुसार महाशिवरात्रि यानि की महाकाल का पूजन भद्रा के प्रभाव से रहित होता है। बताते हैं कि पहली महाशिवरात्रि त्रिग्रही योग में मनाई गई थी।
महाशिवरात्रि पूजन विधि
महाशिव रात्रि पर सूर्योदय से पूर्व उठ कर शुद्ध होने के पश्चात भगवान का पूजन करते हुए उपवास रखना चाहिए। रात को भगवान शिव की चार प्रहर की पूजा करने का विधान है। प्रत्येक प्रहर की पूजा के पश्चात अगले प्रहर की पूजा में मंत्रों का जाप दोगुना, तीन गुना और चार गुना करना चाहिए। प्रत्येक पहर के साथ ही इन मंत्रों का जाप किया जा सकता है। पहले प्रहर में ऊॅ ‘ह्रीं ईशानाय नम: दूसरे प्रहर में ऊॅ’ह्रीं अघोराय नम:, तीसरे प्रहर में ऊॅ ह्रीं वामदेवाय नम: एवं चौथे पहर में ऊॅ ह्रीं सद्योजाताय नम: मंत्र का जाप किया जा सकता है। भगवान शिव की मूर्ति या शिवलिंग को पंचामृत से स्नान कराकर पूजन करना चाहिए।
यह होनी चाहिए पूजन सामग्री
शिव पूजन के लिए सुगंधित पुष्प, बिल्वपत्र, धतूरा, बेर, आम्र मंजरी, जौ की बालें, मंदार पुष्प, गाय का कच्चा दूध, ईख का रस, दही, शुद्ध देशी घी, शहद, गंगा जल, पवित्र जल, कपूर, धूप, दीप, रूई, मलयागिरी, चंदन, पंच फल, पंच मेवा, पंच रस, इत्र, गंध रोली, मौली जनेऊ, पंच मिष्ठान्न, पूजन पात्र, कुशासन एवं शिव व माँ पार्वती की श्रृंगार की सामग्री होनी चाहिए।