पोकरण कस्बे में वर्षों पूर्व मीठे पानी की व्यवस्था को लेकर एवं कृषि क्षेत्रों की सिंचाई के लिए बनाई गई बेरियां संरक्षण का इंतजार कर रही है। इसके साथ ही खुली पड़ी ये बेरियां कस्बेवासियों के लिए परेशानी का सबब भी बनी हुई है। खुली बेरियों में पशु व लोगों के गिर जाने की घटनाएं भी हो चुकी है, जबकि जिम्मेदार कोई ध्यान नहीं दे रहे है। प्राचीन समय में कस्बे के विभिन्न गली मोहल्लों में पेयजल के लिए बेरियां खुदवाई गई थी। कस्बे के साथ ही आसपास क्षेत्र में लोग इन्हीं बेरियों का पानी पीते थे। समय में बदलाव एवं जलदाय विभाग की पाइपलाइनों के विस्तार के चलते बेरियां धीरे-धीरे अपना अस्तित्व खोने लगी है और अब संरक्षण के इंतजार में जमींदोज होने के कगार पर पहुंच गई है। आबादी क्षेत्र में होने के कारण ये बेरियां हादसे को भी न्योत रही है। कस्बे में दर्जनों ऐसी खुली बेरियां है। जिससे कभी भी बड़ा हादसा हो सकता है। वर्तमान में कस्बे में मालियों का बास, सालमसागर तालाब की पाल के पीछे, तोलाबेरा नदी में स्टेशन रोड सहित अन्य छोटी बड़ी कई बेरियां स्थित है। इसी तरह ग्रामीण क्षेत्रों में भी ऐसी बेरियां है, जो आज पूर्णतया सूखी होने के बावजूद खुली हालत में हैं।
अस्तित्व पर मंडरा रहा खतरा
वर्षों पूर्व जो बेरियां लोगों की प्यास बुझाती थी, आज उपेक्षा का शिकार हो चुकी है, जिनके संरक्षण को लेकर कोई कार्रवाई नहीं की जा रही है। हालांकि अधिकांश बेरियों में पानी सूख चुका है, लेकिन कुछ बेरियां ऐसी है, जिनका संरक्षण कर रख-रखाव किया जाता है और उनका पुर्नरुद्धार किया जाए तो बेरियों से पानी निकालकर उसका पेयजल के रूप में उपयोग किया जा सकता है।
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