महाराष्ट्र के आठ जिला केंद्रीय सहकारी बैंकों (DCC Banks) के पास पिछले नौ वर्षों से 101.2 करोड़ रुपये की बंद हो चुकी करेंसी जमा है, जिसे न तो इस्तेमाल किया जा सकता है और न ही इसे आरबीआई (RBI) में बदला जा सकता है। इन बैंकों के लिए इतने बड़े पैमाने पर पुराने नोटों को सुरक्षित रखना एक बड़ी चुनौती बन चुका है। दीमक और अन्य कीटों से बचाने के लिए हर तीन महीने में इन नोटों पर एंटी-टर्माइट स्प्रे किया जाता है और इन्हें अलग-अलग कमरों में रखा जाता है।
इन आठ बैंकों में सबसे ज्यादा 25.3 करोड़ रुपये के पुराने 500 रुपये के नोट कोल्हापुर जिला सहकारी बैंक (Kolhapur DCC Bank) के पास हैं। इसके बाद पुणे जिला सहकारी बैंक (Pune DCC Bank) के पास 22.2 करोड़ रुपये के बंद हो चुके नोट पड़े हुए हैं।
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बताया जा रहा है कि भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने इन नोटों को स्वीकार करने से साफ इनकार कर दिया है। आरबीआई का कहना है कि ये नोट तय समयसीमा के भीतर जमा नहीं किए गए थे, इसलिए अब इन्हें बदला नहीं जा सकता। हालांकि बैंकों ने जमाकर्ताओं को पुराने नोट के बदले नए नोटों का भुगतान कर दिया है। इसलिए ये पुराने नोट इन बैंकों के लिए अब एक बड़ी समस्या बन चुके हैं। अगर आरबीआई इन्हें स्वीकार नहीं करता है, तो बैंकों को भारी नुकसान उठाना पड़ेगा।
कैसे फंसे ये पुराने नोट?
नवंबर 2016 में नोटबंदी लागू होने के बाद जिला सहकारी बैंकों को 500 और 1,000 रुपये के पुराने नोट स्वीकार करने की अनुमति दी गई थी। लेकिन मनी लॉन्ड्रिंग और नियामक अनुपालन को लेकर आशंकाओं के चलते आरबीआई ने डीसीसी बैंकों को इन नोटों को स्वीकार करने से रोक दिया।
इसके बाद जून 2017 में केंद्र सरकार ने अनुमति दी कि डीसीसी बैंक केवल उन्हीं पुराने नोटों को बदल सकते हैं, जो नवंबर 2016 में तय समयसीमा के भीतर जमा किए गए थे। हालांकि अब सवाल यह उठता है कि क्या सरकार या आरबीआई इन बैंकों को कोई राहत देगी, या फिर 101.2 करोड़ रुपये की यह नकदी हमेशा के लिए बेकार हो जाएगी? इस मामले में अब तक कोई ठोस समाधान नहीं निकला है।
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