मुख्यमंत्री की हिंदुत्व से जुड़ी घोषणाओं के मायने:राजस्थान दिवस पर अब भगवा रंग, RSS की डिमांड मानी, विपक्ष पर क्यों छोड़े लाल-पीले गुब्बारे

मुख्यमंत्री की हिंदुत्व से जुड़ी घोषणाओं के मायने:राजस्थान दिवस पर अब भगवा रंग, RSS की डिमांड मानी, विपक्ष पर क्यों छोड़े लाल-पीले गुब्बारे

नजीर का शेर है… ‘जब फागुन रंग झमकते हों, तब देख बहारें होली की…’ और दफ के शोर खड़कते हों तब देख बहारें होली की…। राजस्थान में पिछले 41 दिन से बजट सत्र की बहार आई हुई है। इसमें राजनीति के सभी रंग देखने को मिल रहे हैं। अब तक सदन में एक तरफ सबसे पवित्र सफेद रंग नजर आया तो दूसरी तरफ शर्मिंदा करने वाला काला रंग भी लगा। वैसे तो रंग और दिन कोई बुरे नहीं होते, लेकिन मान्यताओं और परंपराओं की धरती है राजस्थान। यहां हर चीज में रंग और ढंग ही झलकते हैं। खैर, इन सबके बीच होली से एक दिन पहले (12 मार्च) बजट पास हो गया। भजनलाल सरकार का ये दूसरा पूरा बजट था। बजट में पहले वित्त मंत्री दीया कुमारी ने घोषणाओं की झड़ी लगाई थी। बुधवार को बजट पास होने से पूर्व एप्रोपिएशन बिल पर मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा ने एक और मिनी बजट पढ़ लिया। पहले विपक्ष पर खूब लाल-पीले-हरे-नीले रंग के गुलाल गोले छोड़े, फिर कई लोकलुभावन घोषणाओं की बौछारें कीं। उधर, विपक्ष ने भी बीच-बीच में कई रंगों के गुब्बारे फोड़े। बजट पास होने के दौरान सीएम भजनलाल ने अब तक सबसे बड़ा राजनीतिक दांव भी खेलकर चौंका दिया। राजस्थान दिवस को मनाने का दिन बदलने के कई राजनीतिक मायने हैं। इसके साथ ही सीएम ने राजस्थान में CNG और PNG से 2.5% वैट घटाकर 7.5 कर दिया है। इससे प्रदेश में नेचुरल गैस सस्ती होगी। भजनलाल ने 33 पन्नों का भाषण करीब 2 घंटे 25 मिनट में पढ़ा। बजट सत्र और एप्रोपिएशन बिल (वित्त विधेयक) से जुड़े कुछ अनसुलझे सवालों को समझते हैं… दीया कुमारी ने पहले ही कई घोषणाएं की थीं, फिर नई घोषणाओं की वजह?
हर सरकार में ऐसा होता है। यह परंपरा है। बुधवार को मुख्यमंत्री ने नीला कुर्ता पहन रखा था। नीला रंग स्थिरता, गहराई, शांति और विश्वास का प्रतीक माना जाता है। मुख्यमंत्री की घोषणाओं में युवा, किसान और गांव था, क्योंकि भाजपा की सरकार आने के पीछे युवा था। दूसरा पंचायत और निकाय चुनाव की निकटता है। ऐसे में मुख्यमंत्री ने गहराई भी दिखाई और स्थिरता देने का प्रयास भी किया। युवाओं की भर्ती जैसी घोषणाओं में शांति और सुकून का सफेद रंग नजर आया। एप्रोप्रिएशन बिल के दौरान सबसे बड़ी राजनीति घोषणा क्या है?
अब राजस्थान दिवस 30 मार्च की जगह हिंदू नववर्ष को मनाया जाएगा। राजस्थान बने हुए 76 साल हो गए। ये राजनीतिक रूप से बड़ी घोषणा है। आरएसएस की ये लंबे समय से डिमांड थी। भाजपा के वोटर को सूट करती है। इससे पार्टी हिंदुत्व की राजनीति का मैसेज देने की कोशिश करेगी। हर साल आयोजनों में ये दिखेगा। दूसरा अन्य दलों के लिए इसे बदलना भी मुश्किल होगा। क्या एप्रोपिएशन बिल में इस तरह की घोषणाएं होती हैं? कोई बड़ी वजह? हां। हालांकि चुनावी सालों में ज्यादा होता है, लेकिन अब बजट को लंबा करने और घोषणाओं की झड़ी लगाने का पैटर्न शुरू हो चुका है। दूसरा सरकार ये मैसेज नहीं देना चाहती कि वो घोषणाओं में कांग्रेस से कहीं पीछे है। पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत बजट में तीन बार (बजट, बजट रिप्लाई और एप्रोपिएशन) लोकलुभावन घोषणाएं की थीं। जिले बनाने की घोषणा उन्होंने भी बजट पास होने वाले दिन ही की थी। वैसे भी दोनों सरकारों में बजट बनाने वाले अफसर लगभग वहीं है। ऐसे में भाजपा कमजोर नहीं दिखना चाहती। आगे भी हर बजट में ये देखने को मिल सकता है। क्या पुरानी घोषणाएं पूरी हो गईं? नहीं। कई घोषणाएं अब भी अधूरी हैं। हालांकि सरकारी दावे 82 प्रतिशत घोषणाएं पूरी होने के हैं, लेकिन जितनी घोषणाएं की जा रही हैं वो एक साल में पूरी होना संभव नहीं है। दूसरा अब परंपरा भी बन गई है कि हर बार नई घोषणाएं करो और वाहवाही लूटो। ऐसा पिछली सरकार में भी हुआ था। हालांकि सरकार के पास कहने को है कि घोषणाओं को पूरा करने के लिए अभी चार साल बचे हुए हैं। एप्रोपिएशन बिल में कोई बड़ी घोषणा और राजनीति वजह? वित्त मंत्री बजट में करीब सवा लाख नौकरियों की घोषणाएं कर चुकी हैं। अब मुख्यमंत्री ने 26 हजार पदों पर भर्ती की घोषणा की है। राजस्थान में सरकार बनने के पीछे युवा थे। भाजपा लगातार बजट में इस बात पर फोकस कर रही है। बेरोजगार भत्ता की जगह इंटर्नशिप का विकल्प देकर पैसा बढ़ाना भी इसी कड़ी में मुख्य घोषणा है। क्या ये बजट धरातल पर उतरने वाला है? लोकलुभावन घोषणाओं का फायदा क्या है? इसके दो पक्ष हैं। पहला यह कि सरकार बने एक साल हुआ है। ऐसे में शुरुआती दौर में घोषणाएं हो रही हैं। सरकार के पास पूरा करने के लिए समय है। इसमें दिक्कत ये है कि सरकार खुद कर्ज पर निर्भर है। वेतन और भत्तों के अलावा सरकार के पास पैसे नहीं है। ऐसे में सरकार के सामने बजट को पूरा करना बड़ी चुनाैती है। ऐसे में कर्ज से विकास संभव है। पहले वाले बजट सत्र जैसा ही था या कुछ अलग था? राजनीतिक मायने क्या? ये सत्र कई मायनों में अलग है। ये सत्र अभी कुछ दिन और चलेगा। विधानसभा अध्यक्ष का रोना हो या राज्यपाल के भाषण पर नेता प्रतिपक्ष का भाषण नहीं देना हो। ऐसा संभवत: पहली बार ही हुआ है। दोनों ही पार्टियों में कहीं न कहीं वर्चस्व की जंग छिड़ी हुई है। लंबे समय बाद कांग्रेस विपक्ष के रूप में मजबूत है, लेकिन बड़े नेताओं के नाम पर यहां कुछ ही थे। अब इनमें कांग्रेस में विपक्ष के नेता के रूप में टीकाराम जूली का नाम भी जुड़ गया। इनकी तैयारियां और फर्राटेदार भाषण सियासी हल्कों में चर्चा में है। उधर, मंत्रियों की आधी अधूरी तैयारी और विधायकों ने सरकार की किरकिरी कराई तो सदन के नेता के रूप में मुख्यमंत्री की कई मामलों में मैच्योरिटी देखने वाली थी। अब चूंकि बजट पास हो चुका है। दादी से लेकर पाकिस्तान तक विवादों का राजस्थान के लोगों के लोगों के लिए कोई महत्व नहीं है। इन्हें अब होलिका की इनका दहन कर देना चाहिए। ताकि राजस्थान के रंग यूं ही बरकरार रह सकें।

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